लेखक- रमणी मोटाना
सुधाकर पहले ही ज्योतिषी से मिल चुके थे और उस की मुट्ठी गरम कर दी थी. ‘महाराज, कन्या एक गलत सोहबत में पड़ गई है और उस से शादी करने का हठ कर रही है. कुछ ऐसा कीजिए कि उस का मन उस लड़के की ओर से फिर जाए.
‘आप चिंता न करें यजमान,’ ज्योतिषाचार्य ने कहा.
ज्योतिषी ने वीणा की जन्मपत्री देख कर बताया कि उस का विदेश जाना अवश्यंभावी है. ‘तुम्हारी कुंडली अति उत्तम है. तुम पढ़लिख कर अच्छा नाम कमाओगी. रही तुम्हारी शादी की बात, सो, कुंडली के अनुसार तुम मांगलिक हो और यह तुम्हारे भावी पति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. तुम्हारी शादी एक मांगलिक लड़के से ही होनी चाहिए वरना जोड़ी फलेगीफूलेगी नहीं. एक बात और, तुम्हारे ग्रह बताते हैं कि तुम्हारी एक शादी ऐनवक्त पर टूट गई थी?’
‘जी, हां.’
‘भविष्य में इस तरह की बाधा को टालने के लिए एक अनुष्ठान कराना होगा, ग्रहशांति करानी होगी, तभी कुछ बात बनेगी.’ ज्योतिषी ने अपनी गोलमोल बातों से वीणा के मन में ऐसी दुविधा पैदा कर दी कि वह भारी असमंजस में पड़ गई. वह अपनी शादी के बारे में कोई निर्णय न ले सकी.
शीघ्र ही उसे अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से वजीफे के साथ वहां दाखिला मिल गया. उसे अमेरिका के लिए रवाना कर के उस के मातापिता ने सुकून की सांस ली.
‘अब सब ठीक हो जाएगा,’ सुधाकर ने कहा, ‘लड़की का पढ़ाई में मन लगेगा और उस की प्रवीण से भी दूरी बन जाएगी. बाद की बाद में देखी जाएगी.’
इत्तफाक से वीणा के दोनों भाई भी अपनेअपने परिवार समेत अमेरिका जा बसे थे और वहीं के हो कर रह गए थे. उन का अपने मातापिता के साथ नाममात्र का संपर्क रह गया था. शुरूशुरू में वे हर हफ्ते फोन कर के मांबाप की खोजखबर लेते रहते थे, लेकिन धीरेधीरे उन का फोन आना कम होता गया. वे दोनों अपने कामकाज और घरसंसार में इतने व्यस्त हो गए कि महीनों बीत जाते, उन का फोन न आता. मांबाप ने उन से जो आस लगाई थी वह धूलधूसरित होती जा रही थी.