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मुंबई के मुसलिम बहुल इलाके में शौकत अली अपनी पत्नी आयशा व 4 बच्चों सना, रूबी, हिबा व बेटे हसन के साथ हंसीखुशी रह रहे थे. हसन के बड़ा होने पर उस की मां आयशा चाहती थीं कि हसन पास के ही एक जमाल बाबा के पास जा कर ज्ञानधर्म की बातें सीखे. तंत्रमंत्र के नाम पर जमाल लोगों को गुमराह करता था और खूब धन ऐंठता था. हसन रोज शाम को उस बाबा के पास बैठने लगा. धीरेधीरे उस के व्यवहार में बदलाव आने लगा. उस ने अपनी सगी बहन तक पर कुदृष्टी रखनी शुरू कर दी थी. बहनें शादी के बाद ससुराल चली गईं तो हसन की शादी भी हो गई. अब वह नौकरी छोड़ कर बिजनैस करना चाहता था और इस के लिए उस ने अपने घर वालों के साथसाथ बहनों पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया और गहनों तक की डिमांड कर दी.
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उस रात सब चिंता में डूबे सोने चले गए. सना और हिबा की नींद उड़ गई थी. हिबा ने पूछ ही लिया, ‘‘बाजी, क्या सोच रही हो? हसन ने तो बड़ी मुश्किल में डाल दिया. मैं उसे अपने जेवर नहीं दे सकती... पर न दिए तो वह पहले की तरह हंगामा करेगा, क्या करें.’’
‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा. अम्मी की शक्ल देख कर मन कररहा है कि कुछ इंतजाम कर ही दें... अब्बू ने मना तो किया है पर मैं रशीद से इस बारे में बात जरूर करूंगी.’’
अगले दिन नियमानुसार रशीद और जहांगीर आए, हसन कुछ उखड़ाउखड़ा सा था. दोनों के बारबार पूछने पर भी हसन गंभीर ही बना रहा. बस हां हूं में ही जवाब देता रहा. सना और हिबा ने उन्हें आगे कुछ न पूछने का इशारा किया तो फिर वे चुप रहे.