श्रीकांत इस आस और उम्मीद में जी रहे थे कि जिस तरह उन्होंने अपने जीवन की किताब से सुलभा के साथ बिताए चंद सुनहरे पृष्ठों को फाड़ कर फेंक दिया है वैसे ही हेमा भी अपने अतीत को भुला कर उन्हें व परिवार को अपना लेगी.