आज मयंक बहुत खुश था. उस ने पूरे 2 दिन की छुट्टी ली थी. एक दिन तो हमेशा की तरह आराम और काम में निकल गया. मगर आज की छुट्टी का इस्तेमाल उस ने आसपड़ोस वालों से जानपहचान करने में लगाने की योजना बनाई थी. दरअसल, इस मोहल्ले में आए उसे पूरे डेढ़ महीने हो चुके थे. इस दौरान उस की नाइट शिफ्ट चल रही थी. सुबह 5 बजे निकल कर रात में 11 बजे घर में घुसता था. ऐसे में उसे दूसरों से परिचय करने का वक्त ही नहीं मिलता था.
उस ने 200 गज पर 1980-90 के समय के बने मकान का तीसरा फ्लोर खरीदा था. 3 कमरे, घर के बाहर खूबसूरत सी बालकनी और आसपास हरियाली देख कर उस ने यह घर पसंद किया था.
सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आया और सामने के ग्राउंड में कुछ फिटनैस फ्रीक लोगों को मौर्निंग वाक और जौगिंग करता देख मुसकरा उठा. उस ने मन ही मन सोचा कि आज पूरे मोहल्ले का 1-2 चक्कर लगाने और ग्राउंड में जा कर ऐक्सरसाइज करने के बाद ही वह घर लौटेगा.
उस ने ट्रैकसूट पहना और नीचे आ गया. वाक और ऐक्सरसाइज के बाद दूध, अखबार और ब्रैड खरीद कर वापस लौटने लगा कि दूसरे फ्लोर की सीढ़ियों पर आ कर ठिठक गया. दरवाजा अंदर से बंद था और बाहर जमीन पर अखबार के साथ 2 पत्रिकाएं भी पड़ी हुई थीं. मयंक को शुरू से किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक रहा है. उस ने पलट कर देखा तो सरिता और गृहशोभा एकसाथ देख कर उस का मन खुश हो गया. उस ने मन ही मन सोचा कि काश आज फ्री टाइम में मुझे यह पत्रिकाएं पढ़ने को मिल जातीं.