लेखिका- नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
सुबह सुबह मेरा 2 कमरों वाला घर कचरे का ढेर दिखता है. पति को औफिस, बेटे को स्कूल और दोनों बेटियों को कालेज जाने की हड़बड़ी रहती है, इसलिए वे सारे सामान को जैसेतैसे फेंक कर चले जाते हैं. उन के जाने के बाद मैं घर की साफसफाई करती हूं. रात में खाई मूंगफली के छिलकों को उठा कर डस्टबिन में डालने जा ही रही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा. सुबहसुबह घर के इतने सारे काम ऊपर से ये मोबाइल कंपनी वाले लेटैस्ट गानों की सुविधाओं के साथ फोन करकर के परेशान कर देते हैं. मैं ने थोड़े गुस्से से फोन पर नजर डाली, तो गुस्सा जले कपूर की तरह उड़ गया. फोन बड़ी ननद का था. मन में थोड़ा डर समा गया कि क्या बात हो गई, जो दीदी ने इतनी सुबह फोन किया? वे ज्यादातर फोन दोपहर में करतीं.
‘‘हां, प्रणाम दीदी, सब ठीक तो है?’’
‘‘नहीं कविता, कुछ ठीक नहीं है.’’
‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ मैं घबरा गई कि कोई बुरी खबर न सुनने को मिले, क्योंकि ज्यादातर दिल दहला देने वाली खबरें सुबह ही मालूम पड़ती हैं.
खैर, दीदी बताने लगीं, ‘‘देखो न कविता, माही की तबीयत खराब है. उस की सहेली बता रही थी कि वह रातरात भर जगी रहती है. पूछने पर कहती है कि उसे नींद नहीं आती. बेचैनी होती है.’’
‘‘उसे कब से ऐसा हो रहा है?’’
‘‘2-3 महीनों से,’’ दीदी सुबक पड़ीं.
‘‘अरे दीदी, आप रोती क्यों हैं? मैं हूं न. मैं आज उस से मिल लूंगी,’’ कह मैं ने घड़ी देखी. 9 बज रहे थे, ‘‘अब तो वह कालेज चली गई होगी. आप चिंता न कीजिए. शाम को उस से मिल कर मैं आप को फोन करूंगी. चायनाश्ता किया आप ने?’’