दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो रश्मि ने रोहन से कहा, ‘‘सुनिए, मेरे खयाल में अब तो काफी दिन हो चुके हैं, अगर शालिनी का काम बाकी है तो वह किसी गर्ल्स होस्टल में इंतजाम कर लेगी?’’
‘‘क्यों ऐसी भी क्या जल्दी है?’’ रोहन ने कहा.
‘‘बात कुछ नहीं बस बच्चों के ऐग्जाम सिर पर हैं... उन की पढ़ाई नहीं हो पा रही... फिर मेहमान कुछ दिन के ही अच्छे होते हैं.’’
‘‘कैसी बातें कर रही हो रश्मि? क्या शालिनी से यह सब कहते ठीक लगेगा? फिर एक तो वह तुम्हारी सहेली है... इस नए शहर में कहां जाएगी?’’
‘‘कहीं भी जाए या कहीं भी इंतजाम करे यह हमारी सिरदर्दी नहीं,’’ रश्मि ने कुछ झल्ला कर कहा.
‘‘ठीक है कुछ दिन और देखो या तो वह कोई इंतजाम कर लेगी या फिर मैं ही उस का कोई इंतजाम कर दूंगा. तुम परेशान न हो,’’ रोहन उसे दिलासा दे कर औफिस चला गया. रोहन का सारा दिन उधेड़बुन में बीता. अब उसे शालिनी का साथ अच्छा लगने लगा था. वह उस के बिना नहीं रहना चाहता था, परंतु रश्मि का क्या इलाज किया जाए? बहुत सोचने के बाद रोहन ने एक उपाय सोचा. उस ने शहर से बाहर बनी नई कालोनी में एक मकान किराए पर लिया और उस में शालिनी को शिफ्ट कर दिया.
एक बार को शालिनी हिचकिचाई. कहा, ‘‘रोहन, क्या यह ठीक होगा?’’
‘‘देखो शालिनी तुम्हारा कोई नहीं है और अब न ही मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम बताओ क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? इतने दिन साथ गुजारने के बाद क्या हम दोनों को एकदूसरे की आदत नहीं हो गई है?’’