‘‘कितनी भली लग रही हो, मेरी जान,’’ ऐसा कह कर वह एक लंबी हंसी हंसी. फिर उस ने अपनी सिगरेट का कश लिया. इस बीच, उस ने अपनी नजर प्रीति के चेहरे से नहीं हटाई.
‘‘क्या हुआ माई स्वीटनैस,’’ अपनी खनकती आवाज में वह बोलती रही, ‘‘मुझे देख कर खुश नहीं हुई?’’
प्रीति शीला को विस्फारित नेत्रों से देख रही थी. उस का मुंह एकदम सूख गया था. एक शब्द भी निकालना मुश्किल हो गया था.
‘‘नहीं,’’ आखिर एक शब्द निकल ही आया, ‘‘हमें तो लगा था कि ऐक्सिडैंट.
शीला ने धुएं का छल्ला बनाते हुए कहा, ‘‘ऐक्सिडैंट? कैसा ऐक्सिडैंट? कोई ऐक्सिडैंट नहीं हुआ था. वह तो मुझे मारने की कोशिश की गई थी जो नाकामयाब रही. हूं न तुम्हारे सामने, माई डार्लिंग,’’ वह फिर हंस दी.
लेकिन जब प्रीति उस से गले मिलने उस की तरफ बढ़ी, तो उस ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया, ‘‘नहीं, वहीं रहो. तुम्हें क्या लगता है, मैं भूल गई हूं, कैसी एलर्जी हो जाती है तुम्हें, मेरी सिगरेट के धुएं से. लेकिन फिर भी,’’ मुंह से धुएं का बड़ा सा बादल निकालते हुए वह बोली, ‘‘फिर भी तुम्हारा हर आशिक चेन स्मोकर था. हाऊ आइरौनिक.’’ फिर वह जोरजोर से हंसने लगी और हंसतेहंसते उस ने अपनी सिगरेट बुझा दी.
प्रीति की नजरें शीला पर से अब जा कर हट पाई थीं. गरमियों की छुट्टियों में दोनों बहनें किसी नई जगह जाती थीं, शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि. इन की मम्मी को असल में हिलस्टेशन बहुत पसंद थे. जहां भी ये बहनें जातीं, हालात कुछ ऐसे बनते कि ये हमेशा अपने चारों तरफ अपने हमउम्र नौजवानों को पातीं. शीला से तो इन नौजवानों को डर लगता था. वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी. मगर प्रीति का हर गरमी में एक नया अफसाना हो ही जाता था.