सबकुछ कितना प्रदूषित हो गया है. वातावरण के साथसाथ इंसानी रिश्तों पर भी फरेब की धूल जम गई है. दुनियादारी, अपने मतलब के लिए चेहरे पर जमी डस्ट को तो हम साफ कर लेते हैं लेकिन मन कैसे साफ करेंगे?