चंद्रा खड़ी थी सामने. तो क्या श्रीमती गोयल अपनी चंद्रा ही हैं जिस के लेख अकसर देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपते हैं?
‘‘जरा किस्मत देखो, पति शादी के 5 साल बाद अपने से आधी उम्र की लड़की के साथ भाग गया. औलाद कोई है नहीं. अफसोस होता है मुझे श्रीमती गोयल के लिए.’’
काटो तो रक्त नहीं रहा मेरी शिराओं में. आंखें फाड़फाड़ कर मैं अपने सहयोगी का चेहरा देखने लगा जो बड़बड़ा भी रहा था और बड़ी रुचि ले कर चंद्रा को सुन भी रहा था. इस सत्य का इतना बड़ा धक्का लगेगा मुझे मैं नहीं जानता था. ब्लड प्रेशर का मरीज तो हूं ही मैं, उसी का दबाव इतना बढ़ गया कि लंच बे्रेक तक पहुंच ही नहीं पाया मैं. तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि अस्पताल में जा कर ही मेरी आंख खुली.
‘‘सोम, क्या हो गया तुम्हें? क्या सुबह कुछ परेशानी थी?’’
चंद्रा ही तो थी मेरे पास. इतने लोगों की भीड़ में बस चंद्रा. शायद 22 वर्ष पुरानी दोस्ती का ही नाता था जिस का प्रभाव चंद्रा की आंखों में था. माथे पर उस का हाथ और शब्दों में ढेर सारी चिंता.
‘‘अब कैसे हो, सोम?’’
50 के आसपास पहुंच चुका हूं मैं. वर्माजी, वर्मा साहब सुनसुन कर कान इतने पथरा गए हैं कि अपना नाम याद ही नहीं था मुझे. मांबाप अब जिंदा नहीं हैं और छोटी बहन भाई कह कर पुकारती है. बरसों बाद कोई नाम से पुकार रहा है. कल से यही आवाज है जो कानों में रस घोल रही है और आज भी यही आवाज है जो संजीवनी सी घुल रही है कानों में.