कावेरी की सास मरने से 1 साल पहले चोरी से उस से मिलने आई थीं. उस के जेवर लौटाते हुए उन्होंने कहा था, ‘तेरी हिम्मत की दाद देती हूं. औरतों को हमेशा भोगने की चीज ही समझा जाता रहा है, हमारी बिरादरी की औरतों ने ऐसा ही जीवन जिया है. उन की दुनिया को बड़ी चतुराई से घर की चारदीवारी में सीमित रखने की साजिश पुरुषों द्वारा आज भी रची जा रही है और आज भी वे शोषण की शिकार हैं.’
वे थोड़ी देर को रुकीं फिर कहने लगीं, ‘अनुशासन, हया, तमीज सब औरतों के ही आभूषण हैं. पुरुष कितना भी अनैतिक और अशोभनीय आचरण करे, उस के चरित्र पर कभी कलंक नहीं लगाया जाता जैसे कि वह सामाजिक अनुशासन के परे है. समाज के सभी स्तरों पर औरतों के ऊपर अकथनीय उत्पीड़न होता है.’ फिर उन्होंने बातों का रुख बदला, ‘तू ने सुंदरम को वकील बना दिया. यह तेरी हिम्मत की बात है. भाइयों से कभी पैसे की मदद नहीं मांगी. शादी भी भाई की लड़की से न कर वकालत पास लड़की से की यह और भी खुशी की बात थी.’ ‘छोटे मुन्नूस्वामी को लाइब्रेरियन बना दिया और उस की शादी भी भाई की लड़की से नहीं की. यह भी शान की बात है. छोटी बहू को काम पर लगवा दिया. आज की महंगाई के चलते सब काम अच्छी तरह निबटा दिया. मैं तुम्हें आज प्रणाम करती हूं. ये गहने ले.’
‘नहीं, अम्मां,’ कावेरी बोली, ‘आप ने मेरी हर बात को समझा और मुझ से मिलने आईं, यही मेरे लिए काफी है. ये गहने आप ही रखिए. कभी आड़े वक्त आप के काम आएंगे,’ फिर थोड़ा रुक कर आगे बोली, ‘क्या एक सवाल आप से कर सकती हूं...’