नलिनी वहां से चल दी. उसे बेहद शांति मिली थी. उसे क्या करना है, यह निश्चय पक्का हो गया था. उसे लगा कि वह तो आत्महत्या की भावना में डूबी रहती है, जबकि उस की प्रिय सहेली ने आगे बढ़ कर जिंदा रहना सीख लिया. अपने कमरे में आ कर वह लेट गई, वह जान गई अब मुसकराना कितना आसान है. वह विकास के खयाल में डूब गई. उस ने उसे अपना शरीर, मन सब समर्पित किया था. उसे फिर मधु की दुनिया को ठेंगा दिखाती हंसी याद आ गई तो वह भी मुसकरा पड़ी.
उस ने अपना फोन उठाया और पहली बार विकास का नंबर मिला दिया. विकास ने फोन उठाया तो नलिनी के मुंह से उत्साहित स्वर में निकला ‘विकास’ और विकास ने आगे सुने बिना ही प्रसन्नता भरी आवाज में कहा, ‘‘नलिनी, मैं आ रहा हूं.’’
नलिनी को लगा वह खुद रोशनी की किरण ले जाने के बजाय काली अमावस रात का अंधेरा बटोर कर अकारण ही अपने जीवन में भरती चली गई. काश, उम्र के फर्क को नजरअंदाज कर वह हिम्मत कर पहले ही उस घुटनभरे अंधेरे को काटते हुए उस चेहरे तक पहुंच जाती जो उस का इंतजार कर रहा था. फिर मुसकराते हुए वह यह गीत गुनगुना उठी, ‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन...’
अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.