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लेखिका- सुधा थपलियाल

थोड़ी देर में एक दरवाजा खुलने की आवाज आई. एक लंबी, गौरवर्ण, सुंदर सी लड़की अस्तव्यस्त सी गाउन को पहने हुए बाहर निकली.

‘मम्मी, यह कैसा शोर हो रहा है? मैम, आप?’ प्राची को देखते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

नफरत की निगाहों से रीना को घूरती हुई प्राची उस कमरे की ओर जाने लगी जहां से रीना निकली थी. घबराई सी रीना ने उसे रोकने की असफल कोशिश की. प्राची ने एक ओर उसे धक्का दे कर कमरे में घुस गई. मनीष बिस्तर पर आराम से निर्वस्त्र बेखबर सो रहा था. चादर एक ओर सरकी हुई थी.

‘मनीष,’ पूरी ताकत से प्राची चिल्लाई.

आंखें मलता हुआ मनीष उठा. प्राची को देख कर वह निहायत ही आश्चर्य से भर गया. सकपकाते हुए अपने को ढकने की कोशिश करने लगा.

‘नंगे तो तुम हो ही चुके हो, ढकने के लिए बचा ही क्या है?’ शर्ट उस की तरफ फेंकती हुई हिकारत से प्राची बोली और कमरे से बाहर आ गई.

रीना सिटपिटाई सी खड़ी हुई थी. थोड़ी देर में मनीष भी कपड़े पहन कर बाहर आ कर प्राची का हाथ पकड़ कर बाहर जाने के लिए मुड़ा. प्राची ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया. जातेजाते रीना की मां से प्राची बोली, ‘शर्म नहीं आती तुम्हें, तुम्हारे ही सामने, तुम्हारी बेटी किसी पराए आदमी के साथ सो रही है.’

‘हमारे बारे में क्या बक रही है, अपने आदमी से पूछ,’ बेशर्मी से उस औरत ने जवाब दिया.

‘तो... यह है तुम्हारा स्तर,’ मनीष की ओर देखती व्यंग्य से प्राची कह एक झटके में बाहर निकल गई.

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