मदन ने फोन उठाया. ‘‘कैसी तबीयत है तुम्हारी? यदि हम फोन न करें तो तुम से कभी बात भी न हो... पूर्वा की शादी के लिए कोशिश कर रहे हो या उसे ऐसे ही बैठाए रखने का इरादा है?’’ उधर से आवाज आई.
‘‘नहींनहीं, भाई साहब... आप को तो मालूम है कि उस ने बैंक से लोन ले कर पढ़ाई पूरी करी है, तो पहले उसे लोन चुकाना है, इसलिए नौकरी देख रही है.’’ ‘‘तो अब तुम बैठ कर बेटी की कमाई पर ऐश करोगे.’’
‘‘अरे नहीं, मैं तो अपाहिज हूं... उस की शादी आप को ही करनी है. कोई लड़का निगाह में हो तो बात चलाइएगा.’’ ‘‘ठीक है.’’
मदनजी पत्नी संध्या से बोले, ‘‘भाई साहब को हम लोगों की कितनी फिक्र रहती है.’’ तभी चहकती हुई पूर्वा मां से लिपट कर बोली, ‘‘मां, मेरा कैंपस सलैक्शन हो गया है.’’
‘‘अरे वाह, शाबाश,’’ वे बेटी का माथा चूमते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी जौब किस कंपनी में लगी है?’’ ‘‘विप्रो,’’ कह उस ने पापा के चरणस्पर्श किए.
पापा की आंखें सजल हो उठीं. बोले, ‘‘खूब तरक्की करो, मेरी बेटी... कब और कहां जौइन करना है?’’ ‘‘पापा, जौइनिंग लैटर आने के बाद ही पता लगेगा... वैसे मैं ने दिल्ली के लिए लिखा था.’’
‘‘ठीक है, तुम्हारा रहने का प्रबंध ताऊजी के यहां हो जाएगा.’’ ‘‘पापा, मैं अपने रहने के विषय में निर्णय नहीं कर सकती?’’
ये भी पढ़ें- मृदुभाषिणी: क्यों बौना लगने लगा शुभा को मामी का चरित्र
‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?’’ पूर्वा का जौइनिंग लैटर आ गया था. दिल्ली औफिस में जौइन करना था.
दिल्ली का नाम सुनते ही पापा खुश हो उठे. उन्होंने तुरंत ताऊजी को फोन लगा कर सूचना दे दी, ‘‘भाई साहब, पूर्वा की नौकरी दिल्ली में लग गई है. 15 तारीख से जौइन करना है.’’ ‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है.’’