लेखिका- जागृति भागवत
इस पर सिद्धार्थ बोला, ‘‘डोंट टेक इट अदरवाइज, लेकिन उस रात जब आप से मुलाकात हुई और जो बातें हुईं, उस का मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा. मैं ने कहा था न कि आप मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं और वही हुआ, मैं समझ गया कि मेरे पास क्या है और मुझे कितना खुश होना चाहिए. मैं ने अब पापा के साथ औफिस जाना भी शुरू कर दिया है ऐंड आय एम रियली एंजौइंग इट और हां, अब मैं ने डैड को पापा कहना भी शुरू कर दिया है. ऐक्चुअली, आप को बताऊं, मौम और पापा बहुत सरप्राइज्ड हैं इस बदलाव से. मौम ने मुझ से पूछा भी था लेकिन मेरी समझ में नहीं आया कि क्या बताऊं. एनी वे, अब आप ने रहने के बारे में क्या सोचा है?’’ इस सवाल से जानकी मानो आसमान में उड़तेउड़ते अचानक जमीन पर आ गिरी हो. चेहरे पर उदासी लिए बोली, ‘‘पता नहीं, यहां पर तो किराए के लिए डिपौजिट भी देना पड़ता है और मैं वह अफोर्ड नहीं कर सकती.’’
‘‘अगर आप बुरा न मानें तो एक रिक्वैस्ट कर सकता हूं?’’
‘‘कहिए.’’
‘‘मैं यह कह रहा था कि जब तक आप के रहने का इंतजाम नहीं हो जाता, तब तक आप मेरे घर पर रह सकती हैं.’’ जानकी के चेहरे के बदले भाव देख कर सिद्धार्थ ने तुरंत बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वहां मेरी मौम भी हैं. एक आउटहाउस अलग से है, वहां आप को कोई परेशानी नहीं होगी.’’ जानकी को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. उसे लगा कि थोड़ी सी पहचान में कोई आदमी क्यों किसी की इतनी मदद करेगा. पहली छवि के आधार पर सिद्धार्थ पर भरोसा करना कोई समझदारी नहीं थी. जो कुछ यह बोल रहा है, न जाने उस में कितना सच है. जरा देर की पहचान है इस से. इस के साथ जा कर मैं कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं. अनजान शहर है, अनजान लोग. कैसे किसी पर भरोसा कर लूं?