अनुराग से मिल कर रागिनी जैसे खिल उठी. आज उस का मन शारीरिक पीड़ा होने के बाद भी प्रफुल्लित हो रहा था. ऐसा क्या था आज की मुलाकात में जिस ने उस के अंदर एक उजास भर दिया. उस का चेहरा गुलाबी आभा से दमकने लगा. पैर के दर्द को भुला कर वह गुनगुनाने लगी, “मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी, मुझ से खुद में घोल दे तो मेरे यार बात बन जानी...”
अगली सुबह जब तक अनुराग आए, रागिनी नहाधो कर अपने गीले केश लहराती किचन के पास आरामकुरसी डाल कर बैठ चुकी थी. उस का एक मन अनुराग के आकर्षण में बंधा प्रतीक्षारत अवश्य था, परंतु दूसरा मन उन के निजी जीवन में उपस्थित लोगों के प्रति चिंताग्रस्त था. उन का अपना परिवार भी तो होगा, यही विचार रागिनी के उफनते उत्साह पर ठंडे पानी के छींटे का काम कर रहा था.
“तो आप अर्ली राइजर हैं," उसे एकदम फ्रेश देख कर अनुराग बोले.
“बस, आप का इंतजार कर रही थी, इसलिए आज जल्दी नींद खुल गई," रागिनी की आंखों में अलग सा आकर्षण उतर आया. उस की भावोद्वेलित दृष्टि देख अनुराग कुछ विचलित हो गए. आगे बात न करते हुए वे चाय बनाने लगे.
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“तो तय रहा कि अगले एक महीने तक आप यों ही रोज मेरे लिए चाय बनाएंगे," रागिनी कह तो गई, पर सामने से कोई प्रतिक्रिया न आने पर संशय से घिर गई, “आप के घर वाले... आई मीन... आप की वाइफ और बच्चे... कहीं उन्हें बुरा तो नहीं लगा आप का मेरे घर इतनी सुबह आना.”