समीरा की पहली ऐनिमेशन फिल्म के पुरस्कृत होने पर उसे बधाई देने उस के सहपाठी अनंत के साथ उस का दोस्त मयंक भी आया था. ‘‘मयंक सुबह ही मुंबई से आया है... मेरे पास ठहरा है,’’ अनंत ने कहा, ‘‘तुम्हें मुबारक देने आना जरूरी था, लेकिन मयंक को अकेला कैसे छोड़ता, इसलिए साथ ले आया.’’
‘‘बहुत अच्छा किया. मुझे भी इन से मिल कर अच्छा लगा,’’ समीरा मयंक की ओर मुड़ी, ‘‘वैसे दिल्ली किस सिलसिले में आना हुआ?’’ ‘‘नौकरी की तलाश में...’’
‘‘बेहतर नौकरी की तलाश कह यार,’’ अनंत ने बात काटी, ‘‘यह उस लोकप्रिय टीवी चैनल में प्रोग्राम प्लैनर है, जिस के सीरियल वर्षों तक चलते हैं और भाई को कुछ नया करने को नहीं मिलता. इसीलिए चैनल बदल रहा है.’’ ‘‘अच्छा तो आप भी हमारी ही बिरादरी के हैं.’’ ‘‘जी हां, तभी तो अनंत से दोस्ती है.’’
‘‘तुम्हारे से भी हो सकती है अगर तुम इसे भी इनाम मिलने की खुशी की दावत में शामिल कर लो,’’ अनंत ने कहा, ‘‘और मुझे तो दावत आज ही चाहिए समीरा.’’ ‘‘जरूर. पहले घर पर ही सीता काकी के बनाए गाजर के हलवे से मुंह मीठा करो, फिर खाना खाने बाहर चलेंगे,’’ समीरा चहकी.
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फिर कुछ ही देर में एक प्रौढ़ महिला चाय और नाश्ता ले आई. ‘‘मजा आ गया,’’ मयंक ने नाश्ता करते हुए कहा, ‘‘बाहर कहीं खाने जाने के बजाय घर पर ही क्यों न खाना खाएं अनंत? भई मैं तो रोजरोज बाहर खाना खा कर आजिज आ चुका हूं.’’
‘‘अगर समीरा को खिलाने में परेशानी न हो तो मैं भी बाहर के बजाय घर पर ही अरहर की दाल और चावल खाना पसंद करूंगा.’’ ‘‘बिटिया को काहे की परेशानी? मैं हूं न सब बनाने को,’’ सीता काकी बोली, ‘‘दालचावल के साथ और क्या बनाऊं?’’