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इस तरह अपने गुस्से की आग को पानी बनाने के प्रयास में कब उस का प्यार भी पानी बनता चला गया इस बात का उसे एहसास  भी नहीं हुआ. अब संकल्प के करीब आने पर उसे मिलन की उत्कंठा नहीं  होती थी. कोई एहसास नहीं जागता था. उन दोनों के बीच वक्त के साथ दूरियां बढ़ती ही गईं और एक दिन उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया, जब छोटी सी बात पर संकल्प ने उस पर हाथ उठा दिया. दरअसल, उस की सास सदा ही शैली के खिलाफ संकल्प को भड़काती रहतीं और उलटीसीधी बातें कहतीं. लगातार किसी के खिलाफ बातें कही जाएं तो स्वाभाविक है, कोई भी शख्स उसे सच मान लेगा. संकल्प के साथ भी ऐसा ही हुआ. आवेश के किन्हीं क्षणों में शैली के मुंह से सास के लिए कुछ ऐसा निकल गया जिस की शिकायत सास ने बढ़ाचढ़ा कर बेटे से कर दी. बिना कुछ पूछे संकल्प ने मां के आगे ही शैली को तमाचा रसीद कर दिया और मां व्यंग्य से मुसकरा पड़ीं.

संकल्प का यह व्यवहार शैली के दिल में कांटे की तरह चुभ गया. उस ने उसी समय घर छोड़ने का फैसला कर  लिया और अपना सामान पैक करने लगी. उसे किसी ने नहीं रोका. वह बेटी  को ले कर निकलने ही वाली थी कि सास ने उस की बेटी नेहा का हाथ थाम लिया. उन का हाथ झटक कर नेहा को लिए वह बाहर निकल आई.पीछे से सास की आवाज कानों में गूंजी,  ‘‘इस तरह घर छोड़ कर जा रही हो तो याद रखना, लौट कर आने की जरूरत नहीं है.’’

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