नताशा को तो हर्ष फूटी आंख नहीं सुहाया था. मन तो किया था उस का नौकरों से धक्के मरवा कर उसे घर से बाहर फिकवा दें और कहे कि यही उस की असली जगह है. लेकिन बेटी की खातिर वह खून का घूंट पी कर रह गई थी.
हर्ष से मिलने के बाद नताशा के मन में एक बौखलाट भर गई थी यह सोच कर कि अगर कहीं त्रिशा ने हर्ष से शादी करने की जिद पकड़ ली तो वह क्या करेगी? समाज में उस की इज्जत और मानमर्यादा का क्या होगा? लोग तो हसेंगे उस पर और कहेंगे कि बड़ी पैसे वाली बनती है, तो बेटी की शादी एक ऐसे लड़के से क्यों कर दी जिस का अपना एक घर भी नहीं है?
नताशा किसी भी तरह हर्ष से अपनी बेटी को दूर कर देना चाहती थी. और इस के लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने को तैयार थी.
पता लगाते हुए एक रोज वह हर्ष के घर पहुंच गई और उस के परिवार वालों की खूब बेइज्जती करने लगी यह बोलकर कि जानबूझ कर उन्होंने अपने बेटे को उस की बेटी के पीछे लगाया, ताकि सारी उम्र मुफ्त की रोटियां तोड़ सकें.
“क्या समझते हो, तुम बापबेटे अपने चाल में कामयाब हो जाओगे? कभी नहीं. कभी मैं तुम्हें तुम्हारे मंसूबों में कामयाब नहीं होने दूंगी,” जो मन सो नताशा उन्हें सुना आई.
चाहते तो हर्ष के पिता भी उस की बेइज्जती कर सकते थे, पर घर आए मेहमान को उन्होंने इज्जत देना सीखा था, इसलिए चुपचाप सब सुनते रहे.
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