पिछला भाग पढ़ने के लिए- आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा: भाग-2
3 जून
आज जसप्रीत भी गई थी चांदनी चौक, उसे अपने लिए खरीदारी करनी थी. अंकलजी प्रतिदिन मम्मी और आंटीजी के चले जाने के बाद 2-3 घंटे तक सोते रहते हैं और शेष समय समाचारपत्र व पत्रिकाएं आदि पढ़ने में बिता देते हैं. पर आज वे मेरे साथ बैठ कर खूब बातें करते रहे. अंकलजी बहुत रोचक किस्से सुनाते हैं. उन्होंने बताया कि कालेज के दिनों में वे अपने दोस्तों के साथ मिल कर खूब शरारत करते थे. किसी भी बरात में वे सजधज कर चले जाते और दूल्हे के आगे खूब नाचते थे. बाद में खापी कर चुपचाप वापस आ जाते थे.
अंकलजी हिंदी बोलते हुए बीचबीच में पंजाबी के शब्दों का प्रयोग करते हैं. मुझे यह बहुत अच्छा लगता है.
वे मुझे प्रशांत पुत्तर कह कर पुकारते हैं. उन के साथ बातों में दिन हंसते हुए बीत गया.
शाम को सब लोग वापस आ गए. जसप्रीत पास ही खड़े ठेले से मेरे लिए कोला वाली बर्फ की चुस्की ले कर आई. आज सुबह बात कर रहे थे हम दोनों अपनी पसंदनापसंद के विषय में. याद रही जसप्रीत को मेरी पसंद. मेरा रोमरोम खिल उठा.
4 जून
ओह, आज का दिन...क्या लिखूं? इस समय रात में डेढ़ बज चुके हैं. प्रीत सो गई होगी या नहीं? पता नहीं. पर मुझे नींद कहां?
सुबह से ही मेरे दोस्त अविनाश
और संजीव आए हुए थे. शाम
को वापस गए. सारा दिन कोई बात नहीं हुई मेरी जसप्रीत से.
रात को खाना खाने के बाद हम दोनों छत पर चले गए. आसमान में बादल छाए हुए थे और हवा कुछ शीतलता लिए थी. शायद कहीं बारिश हुई होगी.