पिछला भाग- अपने अपने शिखर: भाग-3
‘‘डाक्टर, इंसान कर्तव्य के प्रति कितना भी कठोर हो, लेकिन कभीकभी वह अपने मन की करता है, जो उसे नहीं करना चाहिए. कभी दिल के किसी कोमल भाव के कारण और कभी स्वार्थवश. मैं ने वह काम भावुकता में किया था और अपने स्वार्थ के लिए भी. वह राज मैं ने दिल में छिपाए रखा. लेकिन जब तक बहुत मजबूरी न हो तो कोई भी इंसान किसी गहरे राज को ले कर मरना नहीं चाहता. किसी को तो बताने का मन करता ही है. अभी तक मैं ने उस बात का जिक्र किसी से नहीं किया था, लेकिन डाक्टर आप ने बात छेड़ी है तो आज मैं आप को बताना चाहती हूं. आप का नेचर मुझे बहुत अच्छा लगता है इसलिए. हालांकि उस बात से अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. बहुत साल हो गए, पता नहीं कौन कहां होगा. फिर भी मैं आप से एक वादा चाहूंगी कि उस घटना को आप एक डाक्टर की हैसियत से नहीं, एक खुले दिल के इंसान के रूप में सुनें.’’
‘‘वादा,’’ साखी ने अपना दाहिना हाथ मेट्रेन मारिया की ओर बढ़ाया.
मेट्रेन मारिया ने साखी का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया और कहा, ‘‘मैं रावनवाड़ा के हौस्पिटिल में नर्स थी और उस वक्त यंग थी. मेरा अल्बर्ट से अफेयर था. अल्बर्ट टैंपरेरी ड्राइवर था हौस्पिटल में. उस की सरकारी ड्राइवर की पक्की नौकरी का चक्कर चल रहा था. उन्हीं दिनों एक सरकारी औफिसर की वाइफ डिलिवरी के लिए हमारे हौस्पिटल में भरती हुई थीं. अल्बर्ट ने बताया था कि नौकरी देना इन्हीं साहब के हाथ में है. मुझे भरोसा था कि अपनी सेवा से अगर मैं मैडम का दिल जीत सकूं तो अल्बर्ट को नौकरी दिलवा सकती हूं.’’