मन की बात तो हमउम्र से ही की जा सकती है. ऐसा ही मन का रिश्ता था शर्माजी और सुमेधाजी के बीच में. जिसे बेटेबहू नहीं समझ पाए थे. महसूस किया तो केवल अजनबी मालिनी ने. और फिर शुरुआत हुई एक नए अध्याय की.