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आशीष पेशे से एक डाक्टर थे. उन की शादी नंदिता नाम की एक लड़की से हुई, जो खुद एक अच्छी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी. शादी के बाद आशीष पत्नी नंदिता की उदासी से परेशान थे. बिस्तर पर भी नंदिता एक संपूर्ण स्त्री की तरह आशीष से बरताव नहीं करती थी. एक दिन आशीष ने नंदिता से जोर दे कर कारण पूछा, तब नंदिता ने बताया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है और उस के प्यार में पागल है. आश्चर्य की बात तो यह थी कि जिस व्यक्ति से नंदिता प्रेम करती थी वह शादीशुदा था. यह सुन कर आशीष के पैरों तले जमीन खिसक गई. एक दिन क्लीनिक पर उस से एक महिला मिलने आई.
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आशीष ने काफी सोचविचार किया. ऐसी परिस्थिति में उन के पास बस 2 ही विकल्प थे-नंदिता को पूरी तरह से आजाद कर दें ताकि वह अपने ढंग से अपनी जिंदगी निर्वाह कर सके या फिर उसे अपने साथ रख कर उस का किसी मनोवैज्ञानिक से इलाज करवाएं. यह स्थिति उन के लिए काफी कठिन और यंत्रणादायी होती. वे तिलतिल कर घुटते और नंदिता का छल उन के मन में एक कांटे की तरह आजीवन खटकता रहता. फिर भी नंदिता को सुधरने का मौका दे कर वे महान बन सकते थे. वे इतने दयालु तो थे ही, परंतु सब कुछ करने के बाद भी अगर वह नहीं ठीक हुई तो... तब वे अपनेआप को किस प्रकार संभाल पाएंगे. यह क्या कम दुखदाई है कि उन की पत्नी किसी परपुरुष के साथ पूरी ऊष्मा के साथ पूरा दिन बिताने के बाद उन के साथ रात में बर्फ की सिला की तरह लेट जाती है जैसे उस का कोई वजूद ही नहीं है, पति के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है.