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तैयार हो वो औफिस आई. बैठते ही रामदयाल पानी ले आया. पुराना स्टाफ, सीधासादा, वयोवृद्ध. पहले बिटिया कहता था अब मालकिन का सम्मान देता है. पानी ले उस ने कहा.
‘‘रामदयाल.’’
‘‘जी साब.’’
‘‘ब्रिजेश बाबू आ गए?’’
‘‘जी साब जी.’’
‘‘उन को बुला दो.’’
थोड़ी देर में ब्रिजेश बाबू आए. दादू से थोड़े ही छोटे हैं, सरल स्वभाव के हैं.
‘‘आइए बाबूजी बैठिए.’’
‘‘कोई समस्या है क्या मैडम.’’
‘‘जी, देखने में तो छोटी बात है पर समस्या छोटी नहीं बहुत बड़ी हो सकती है.’’
वो घबराए.
‘‘क्या हो गया?’’
‘‘आप तो जानते हैं हर कंपनी का नियम है कि उस की डील छोटी हो या बड़ी उसे सिक्रेट रखा जाता है.’’
‘‘हां यह तो व्यापार का पहला नियम है.’’
‘‘हमारी कंपनी में इस नियम का पालन नहीं हो रहा.’’
चौंके वो, ‘‘क्या?’’
‘‘हाल में जो डील हुई है उस की खबर बाहर फैली है...कैसे?’’
वो घबराए, मुख पर चिंता की रेखाएं उभर आईं, ‘‘पर...उस की खबर तो आप, सरजी और मुझे ही है बाकी किसी को पता नहीं.’’
‘‘तभी तो यह प्रश्न उठ रहा है सूचना बाहर कैसे गई?’’
उन्होंने सोचा, शिखा ने सोचने के लिए उन को समय दिया.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे छोड़ दो और लोगों को पता हो सकता है.’’
‘‘वो कौन हैं?’’
‘‘एक तो मेरा सहकारी जो सारे कागजपत्तर संभालता है दूसरा टाईपिस्ट जिस ने डील के पेपर मतलब टर्म्स औफ कंडीशंस टाईप किया था.’’
‘‘आप के पास कितने दिनों से काम कर रहे हैं?’’
‘‘हो गए चारपांच वर्ष.’’
‘‘स्वभाव के कैसे हैं दोनों?’’
‘‘सहकारी राजीव तो प्रश्न के बाहर है. रामदयाल का पोता गरीब पर ईमानदार सज्जन परिवार वैसे ही सहमा रहता है दादा के डर से.’’