गोवा का रोमांटिक माहौल अवंतिका के मंसूबों में सहायक सिद्ध हो रहा था. 5 साल स्त्री के सान्निध्य से दूर रहा युवा पुरुष बारूद से भरा होता है. अवंतिका को बस दियासलाई दिखानेभर की देर थी.
आलोक बिना अधिक प्रयास के ही पके फल सा अवंतिका के पहलू में टपकने को आतुर दिख रहा था. ढलती शाम, बीच का खूबसूरत नजारा और कंधे पर झका सिर... मौन की भाषा बहुत कुछ कह रही थी. अवंतिका की कमर को अपनी बांहों में लपेटे हुए आलोक उसे अपने कमरे में ले आया. दूरियां कम होने लगी तो अवंतिका ने गरम लोहे पर चोट की, ‘‘हमारे पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए क्या उपहार दोगे?’’ अवंतिका ने आलोक का हाथ अपनी कमर से हटाते हुए पूछा.
‘‘जो तुम चाहो,’’ आलोक की आंखों में ढलता सूरज उतर आया.
‘‘सोच लो,’’ प्रेयसी इठलाई.
‘‘सोच लिया,’’ प्रियतम ने चांदतारे तोड़ लाने सा जज्बा दिखाया.
अभी अवंतिका कुछ और कहती उस से पहले ही आलोक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा. अवंतिका ने लाख रोकने की कोशिश की, लेकिन आलोक के पास सुरक्षा उपाय अपनाने जितना सब्र कहां था.
‘देखा जाएगा. हीरे की अंगूठी की इतनी कीमत तो चुकानी ही होगी,’ सोचते हुए
अवंतिका ने अपने विचार झटके और उस का साथ देने लगी.
आलोक को इस सुख के सामने कोहिनूर
भी सस्ता लग रहा था. गोवा से वापसी पर अवंतिका के हाथ में हीरे की अंगूठी ?िलमिल कर रही थी. लेकिन काले को सफेद भी तो करना था न.
सुकेश के साथ उस ने 1-2 बार असुरक्षित संबंध बनाए और निश्चिंत हो गई.
अगले ही महीने अवंतिका को अपने गर्भवती होने का पता चला. वह तय नहीं कर पाई कि बच्चा प्रेम की परिणति है या हीरे की अंगूठी का बिल.