‘‘पर कामिनी संयुक्त परिवारों में तो ये सब...’’
साक्षी की बात को बीच ही में काटते हुए कामिनी बोली, ‘‘हां साक्षी, मुझे पता है. पर संयुक्त परिवार में कुछ लोगों की मनमानियों से किसी का वजूद ही खतरे में पड़ जाए तो? क्या एक पत्नी को अपने पति के साथ जीने का हक नहीं मिलता? क्या एक पत्नी की सिर्फ इसलिए बली चढ़ा दी जाती है कि भाइयों को बुरा न लग जाए? उसे कुछ बोलने का हक नहीं? तुम जैसी भी हो अच्छी हो साक्षी. तुम्हें पता है तुम्हारे पति कितने बजे घर आएंगे. घर आने के बाद पता है एकसाथ सोएंगे, बातें करेंगे. और तुम्हें ये भी पता है कितने बजे औफिस जाएंगे. तुम्हें पता है पति की इनकम कितनी है. उतना तुम खर्च कर सकती हो. लेकिन मुझे कुछ नहीं पता. वैभव का न आने का टाइम है, न जाने का. आज आएंगे भी या नहीं, यह भी पता नहीं. कब खानापीना, सोना है कोई समय तय नहीं है साक्षी,’’ कामिनी ने कहा.
कामिनी ने साक्षी को अपनी लाइफ के हर पहलू की बातें बताईं.
‘‘चलो कामिनी अब सो जाओ, रात का 1 बज रहा है,’’ साक्षी ने कहा.
‘‘हां, साक्षी सोते हैं. तुम भी सफर के बाद आराम नहीं कर पाई,’’ कामिनी बोली.
‘‘मैं जरा सौरभ को संभाल कर आती हूं. अगर वे सोए नहीं होंगे, तो वहीं सो जाऊंगी.’’
‘‘ठीक है साक्षी, देख लेना,’’ कामिनी ने सोते हुए कहा.
साक्षी के मन में उथलपुथल चल रही थी कि आखिर कामिनी के प्रति वैभव की उदासीनता की वजह क्या है? इतनी खूबसूरत होते हुए भी कामिनी में उस की रुचि क्यों नहीं है? आज सुबह नाश्ते की टेबल पर वैभव ने जिस तरह से देखा, उस से तो लगता है उस के दिल में कुछ है. वैभव की नजरों में अजीब सा आकर्षण और निमंत्रण था. साक्षी सोचती हुई अपने पति सौरभ के कमरे में जा रही थी कि उसे एक कमरे में लाइट जलती दिखी.