‘‘वे करते क्या हैं?’’
‘‘मुझे नहीं मालूम. बस, इतना जानती थी कि उन का परिवार बहुत अमीर और संपन्न था.’’
‘‘उन्होंने आप से शादी क्येां नहीं की?‘‘
“मेरे मम्मीपापा जानते थे कि वे लेाग काफी अमीर हैं. वे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. बिना वजह बदनामी होगी, इसलिए उन्होंने कभी पहल नहीं की.’’
अब आकाश को निर्णय लेना था कि वह इसे किस रूप में लेता है. उस के चेहरे के बनतेबिगड़ते भावों को देख कर लगा कि वह अंदर से बेचैन था. यह देख कर मैं डर गई. कहीं कोई ऊंचनीच न कर बैठे. तब तो मैं कहीं की न रहूंगी. आधा घंटा गुजर गया. आकाश ऐसे ही गुमसुम किन्हीं बेखयालों में खोया रहा. मैं उस के करीब बैठी रही. दुखद स्मृतियां मन पर बोझ होती हैं. बेशक कह कर मैं ने अपना बोझ हलका कर लिया, इस के बावजूद मन के एक कोने में भविष्य को ले कर आशंकाएं हिलोरें मार रही थीं. मेरा भविष्य आकाश था. यदि आकाश को कुछ हो गया तो मैं कहीं की न रहूंगी, यह सोच कर मैं बुरी तरह भय से कांप गई. उठ कर किचेन में गई. आकाश के लिए एक गिलास पानी लाई. गिलास उस की तरफ बढ़ाया. गिलास पकड़ते हुए उस ने एक नजर मेरी तरफ फेंका. उस की नजर में मैं ने एक बदलाव देखा, जो आशाजनक लगा.
‘‘मैं ने एक निश्चय किया है.’’ उस के कथन ने मुझे संशय में डाल दिया.
“मम्मी, जिस ने तुम्हारी जिंदगी बरबाद की है, मैं उसे दंड दिलाना चाहता हूं. क्या तुम इस के लिए तैयार हो?’’ मेरे लिए यह आशा की किरण की तरह था. आकाश को ले कर जैसा सोचा था वह उस के विपरीत निकला. यह मेरे लिए सुकून की बात थी. वहीं, यह सोच कर दिल बैठने लगा कि फिर से गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे. जिन्हें नहीं पता होगा, वे भी जान जाएंगे. ऐसे में जो सामाजिक रुसवाइयां होंगी, उन का कैसे सामना करूंगी?