उसेलाइब्रेरी में आते देख अमोली ने सोचा कि औफिस में किसी नए औफिसर ने जौइन किया है. आसमानी शर्ट के साथ गहरे नीले रंग की टाई लगाए गौरवर्णीय वह युवक अमोली को बहुत आकर्षक लगा. लाइब्रेरी में घुसते ही वह पत्रिकाओं के रैक के पास पहुंचा और एक पत्रिका निकाल उलटपुलट कर देखने लगा. कुछ देर बाद वह पुस्तकों की ओर बढ़ गया. अमोली अपनी सीट पर बैठी कंप्यूटर में नई पुस्तकों की ऐंट्री कर रही थी. कुछ देर बाद उस युवक ने ग्राफिक डिजाइनिंग पर एक पुस्तक ला कर अमोली के सामने मेज पर रख दी.
‘‘मिल ही गई... इस बुक को मेरे नाम पर इशू कर दीजिए,’’ कहते हुए वह अमोली के सामने वाली कुरसी पर बैठ गया.
‘‘बुक इशू करवाने के लिए आप की डिटेल ऐंटर करनी पड़ेगी... अपना नाम, डिपार्टमैंट, पता वगैरह बताएं प्लीज,’’ अमोली उस की ओर देखते हुए बोली.
‘‘इस की जरूरत नहीं, औलरैडी ऐंटर्ड है सबकुछ... पिछले कई दिनों से छुट्टी पर था... वाइफ काफी बीमार हैं... मैं सुजीत कुमार... आप शायद इस औफिस में नई हैं... आप से पहले तो एक उम्रदराज मैडम बैठती थीं यहां पर...’’
अमोली ने सुजीत का नाम सर्च किया. एक व्यक्ति ही था औफिस में इस नाम का. फोटो भी था वहां. अमोली ने बुक इशू कर दी.
कुछ देर मुसकरा कर अमोली को देखने के बाद बोला, ‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर... मिलते रहेंगे और फिर तेजी से बाहर निकल गया.’’
डिजाइनिंग की एक मल्टीनैशनल फर्म में वहां काम करने वाले लोगों के लिए बनी हुई थी वह लाइब्रेरी. अमोली वहां 2 माह पहले ही आई थी. सारा दिन काम में व्यस्त रहने के कारण उस की किसी से मित्रता नहीं हो पाई थी. बुक इशू करते समय या कोई जानकारी देते हुए जब कुछ देर के लिए किसी से उस की बातचीत हो जाती तब उसे बहुत अच्छा लगता था.