आहिस्ताआहिस्ता सीढि़यां चढ़ कर अम्मां भी ऊपर आ गईं. बोलीं, ‘‘मुझे तो छत पर चढ़े महीनों हो गए होंगे. शांति ही आ कर छत पर झाड़ू लगा देती है.’’ ‘‘अम्मां मीरा बूआ कैसी हैं?’’
‘‘अच्छी हैं, बेटा. फूफाजी के जाने के बाद उन्हें संभलने में वक्त लगा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी. दोनों बच्चे पढ़लिख कर नौकरी पर लग गए हैं.’’
‘‘रजत की बीवी कैसी है? बूआ से तो बहुत पटती होगी. हम लोगों से ही इतना लाड़ करती थीं, तो अपनी बहू को तो और भी ज्यादा प्यार करती होंगी.’’ ‘‘3-4 साल तो बहू की तारीफ करती रहीं... कुछ दिन पहले फोन आया था. अब सजल के साथ दूसरे फ्लैट में अलग रह रही हैं.’’
‘‘अच्छा.’’ ‘‘पहले जब बूआ छुट्टियों में रहने आती थीं तो क्या मस्ती होती थी. एक दिन खुसरो बाग, फिर एक दिन कंपनी बाग, फिर पिक्चर बस मजा ही मजा.’’
‘‘छोटी तुम बिलकुल चुप हो, क्या हुआ? सो गईं क्या?’’ ‘‘नहीं अम्मां, बातों में भला नींद कहां.’’
इरा कहने लगी, ‘‘दीदी आज तुम ताई को देख कर रो रही थीं. भूल गईं तुम्हारे बीटैक में दाखिले के समय इन्होंने कितना हंगामा किया था कि देवरजी पैसा कहां से लाएंगे. पहले क्व10 लाख पढ़ाई में खर्च करो, फिर क्व10 लाख शादी में. एक थोड़े ही है, 3-3 लड़कियां हैं.’’ ‘‘मीरा बूआ चिल्ला पड़ी थीं कि भाभी आप क्या परेशान हो रही हैं. ईशा मैरिट से पास हुई है. सरकारी कालेज में इतना पैसा नहीं लगता है. हर होशियार बच्चे को स्कौलरशिप भी मिलती है. अभी तक ईशा को हमेशा वजीफा मिला है. देखना उसे यहां भी मिलेगा.