लेखक- नीरजा श्रीवास्तव
‘‘फिरसे 104...’’ मलय का माथा छूते हुए बड़ी बहन हिमानी ने थर्मामीटर एक ओर रख दिया, भीगे कपड़े की पट्टियां फिर से रखनी शुरू कर दीं.
‘‘पता नहीं इस का फीवर क्यों बढ़ रहा है... उतरने का नाम ही नहीं ले रहा. मलय भी इतना जिद्दी है कि डाक्टर के पास नहीं जाता,’’ हिमानी बड़बड़ा रही थी.
‘‘ठीक हो जाएगा न, करना ही क्या है...’’ मलय ने बहन हिमानी को धीरे से बोल कर समझाया.
‘‘देखी नहीं जा रही तेरी हालत. धंसीधंसी आंखें, एकदम कमजोर शरीर... मालूम है मौली का जाना तुझे सहन नहीं हो रहा. खुद ही तो कांड किया है बिना किसी को पूछे, बिना बताए तलाक तक ले डाला. पूरे 7 साल तुम दोनों साथ रहे. क्या हुआ जो मातापिता नहीं बन पाए, 2 बार गर्भपात हुआ था उस का. किसी बच्चे को गोद न लेने का भी निर्णय तुम्हारा ही था. मांपापा थे तब तक सब ठीक था. थोड़ीबहुत नोकझोंक होती थी. पर उन के जाते ही जाने क्या हो गया घर को...
‘‘मैं समझती नहीं क्या कि उस के साथ बोलनेबतियाने वाला कोई नहीं रह गया... तू तो वैसे भी कम बोलता है. बेचारी ने ऊब से बचने के लिए टीचिंग करनी शुरू कर दी और घर पर ट्यूशन लेना भी शुरू कर दिया. तुझे दोनों ही रास नहीं आए. तुझे लगा वह पैसों के लिए नौकरी कर रही है. तेरे अहं को ठेस लगी कि मैं भरपूर कमा कर देता नहीं. मैं तेरे दकियानूसी विचारों को जानती नहीं क्या?... मांबाप तेरे ही नहीं गए, उस ने भी दोबारा मातापिता का साया खोया. बहुत प्यार था उसे उन से.