इधर रमा की कालेज की पढ़ाई अब पूरी होने वाली थी और यह सोचसोच कर प्रीति परेशान हुए जा रही थी कि वह वहां अकेली कैसे रहेंगी? ‘अगर देव का ब्याह मेरी रमा से हो जाए तो कितना अच्छा होगा न? दोनों बहनें साथसाथ रहेगी और फिर छोटे बबुआ भी तो मेरी रमा को पसंद करते हैं?’ अपने मन में ही सोच प्रीति खिल उठती पर उस की हिम्मत नहीं होती यह बात किसी से कहने की, निखिल से भी नहीं, पर कोशिश में जरूर थी वह कि ऐसा हो जाए.
‘अगर रमा से देव की शादी हो जाए, तो कितना अच्छा रहेगा न? अच्छीभली और जानीपहचानी लड़की है और सब से बड़ी बात कि दोनों बहनें प्यार से घर को संभाले रखेंगी. घरसंपत्ति का कोई बंटबारा भी नहीं होगा. लेकिन क्या देव की मरजी जाने बिना उस का रिश्ता किसी भी लड़की से तय करना उचित होगा?’ कल्याणी अपनेआप से ही सवालजवाब करती और फिर चुप हो जाती.
मगर प्रीति जब भी देव की शादी का जिक्र छेड़ती तो कल्याणी कहती, ‘‘जब और जिस से मन मिलेगा हो ही जाएगी एक दिन.’’
मगर रमा को तो पूर्ण विश्वास था कि उस की शादी देव से ही होगी क्योंकि वह उसे पसंद करता है, पर देव के दिल के दरवाजे पर तो तनिका दस्तक दे चुकी थी और रमा इस बात से कोरी अनजान थी.
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जहां रमा के लिए देव एक तृष्णा था वहीं देव के लिए तनिका एक तृप्ति थी. तनिका को ले कर जो भाव देव के मन में जागा था, रमा को ले कर कभी जागा ही नहीं. दोनों का प्यार उस सागर की भांति था जो पूर्णिमा के चांद को देखते ही उद्वेलित हो जाता है.