अगले दिन मैं ने औफिस से छुट्टी ले ली. बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद मैं ने एक बार फिर विशाखा से बात करने की सोची, “क्या तुम्हें पहले से शक था, पर कैसे?”
“हर औरत के मन में यह डर होता है कि कहीं उस का पति भटक न जाए. कहीं उस का कोई अफेयर न हो जाए. लेकिन मैं इस बात से सदा आश्वस्त रही क्योंकि मैं ने तुम्हारी दृष्टि को कभी किसी औरत का पीछा करते नहीं पकड़ा. तुम ने कभी किसी स्त्री के लिए कोई भद्दा मज़ाक, स्त्रीअंगों को ले कर कोई अश्लील टिप्पणी या फिर दूसरों की पत्नियों की प्रशंसा नहीं की. कई वर्ष मैं इस बात से खुश रही. शुरू में मुझे अक्ल भी कहां थी. लेकिन फिर समय बदला. समाज में एलजीबीटी जैसे पारिभाषिक शब्द सुनाई देने लगे. इन के बारे में पढ़ने पर मुझे ज्ञात हुआ कि कितनी तरह की सैक्सुएलिटी होती हैं. फिर कुछ जाननेसमझने के साथ ही मुझे तुम्हारे कृत्यों पर संदेह होने लगा. नहीं जानती कैसे... शायद मैं ने तुम्हारी दृष्टि को अकसर दूसरी महिलाओं तो नहीं, पर दूसरे पुरुषों को अजीब-सी निगाहों से ताकते हुए पाया. हम जिस पार्टी में जाते, मैं तुम्हें वहां उपस्थित आदमियों की ओर एक अलग ढंग से देखते हुए देखती. तब मुझे अपने मन में उठते प्रश्नों के उत्तर न मिलते. लेकिन कल रात से सबकुछ समझ आने लगा है," कह विशाखा हलके से हंसी, “जानते हो, कल रात मैं काफी देर तक चुपचाप आंसू बहाती रही. इतनी खामोशी से कि कहीं तुम सुन न लो. पर अब हंसी आ रही है. सबकुछ साफ नज़र आ रहा है.