पापा मेरी बातें सुन कर अवाक् थे. इतने दिन मैं ने यह सब उन से क्यों नहीं कहा इसी बात पर नाराज होने लगे.
‘‘तुम अच्छी लड़की हो बेटा, तुम तो मेरा अभिमान हो...लोग कहते थे मैं ने एक ही बेटी पर अपना परिवार क्यों रोक लिया तो मैं यही कहता था कि मेरी बेटी ही मेरा बेटा है. लाखों रुपए लगा कर तुम्हें पढ़ायालिखाया, एक समझदार इनसान बनाया. वह इसलिए तो नहीं कि तुम्हें एक मानसिक रोगी के साथ बांध दूं. 4 महीने से तुम दोनों मिल रहे हो, इतना डांवांडोल चरित्र है सोमेश का तो तुम ने हम से कहा क्यों नहीं?’’
‘‘मैं खुद भी समझ नहीं पा रही थी पापा, एक दिशा नहीं दे पा रही थी अपने निर्णय को...लेकिन यह सच है कि सोमेश के साथ रहने से दम घुटता है.’’
रिश्ता तोड़ दिया पापा ने. हाथ जोड़ कर जगदीश चाचा से क्षमा मांग ली. बदहवासी में क्याक्या बोलने लगे जगदीश चाचा. मेरे मामा और ताऊजी भी पापा के साथ गए थे. घर वापस आए तो काफी उदास भी थे और चिंतित भी. मामा अपनी बात समझाने लगे, ‘‘उस का गुस्सा जायज है लेकिन वह हमारा ही शक दूर करने के लिए मान क्यों नहीं जाता. क्यों नहीं हमारे साथ सोमेश को डाक्टर के पास भेज देता.
शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, एक ही रट मेरे तो गले से नीचे नहीं उतरती. शादी क्या कोई दवा की गोली है जिस के होते ही मर्ज चला जाएगा. मुझे तो लगता है बापबेटा दोनों ही जिद्दी हैं. जरूर कुछ छिपा रहे हैं वरना सांच को आंच क्या. क्या डर है जगदीश को जो डाक्टर के पास ले जाना ही नहीं चाहता,’’ ताऊजी ने भी अपने मन की शंका सामने रखी.