लेखक- बद्री शंकर
पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:
काजल दलित थी और सुंदर ब्राह्मणों का लड़का. दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे. छोटे स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सुंदर बड़ी क्लास में पढ़ने के लिए न चाहते हुए भी अपने मामा के यहां चला गया. काजल गांव में ही पढ़ने लगी. वहां मामा सुंदर को पढ़ाने के नाम पर घर के सारे काम कराता था. उस के साथ मारपीट भी करता था. इस बात से सुंदर बहुत दुखी था. उसे काजल और अपने परिवार की बहुत याद आती थी.
अब पढ़िए आगे...
मामा बबलू को आया देख आंसू पोंछ कर सुंदर ने चूल्हे पर पतीली चढ़ाई. देखते ही देखते एक साल बीत गया.
पंडिताइन ने सारे गहने बेच कर पैसा मामा बबलू को भेज दिया, क्योंकि सुंदर को हाकिम बनाने का झांसा जो दिया था. हर महीने फोन आता और डिमांड होती, कभी 2 हजार, कभी 5 हजार की.
एक दिन सुंदर को मौका मिल गया. यों तो मामा खुद जाता था सड़क पर पान खाने, पर पैर में बिवाई निकलने के चलते वह दर्द से चल नहीं पाता था, सो 10 का नोट दे कर सुंदर को ही भेजा. बस फिर क्या था, वह नोट रिकशे वाले को दे कर सुंदर वहां से पहुंच गया बेगुसराय स्टेशन.
एक ट्रेन खगडि़या के लिए चलने वाली थी, सो वह उस में चढ़ गया. पहुंच तो गया वह खगडि़या, लेकिन अब नंदीग्राम कैसे पहुंचे? पैसे नहीं थे, जो आटोरिकशा वाले को देता. चल पड़ा पैदल. रास्ते में एक गांव का तांगा मिला. चढ़ गया उस में. तांगे वाला गांव के चाचा लगते थे, जिन्होंने पैसे नहीं लिए.