कहानी- वीरेंद्र बहादुर सिंह
संविधा की जिद के आगे सात्विक ने हार जरूर मान ली थी, लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी थी. उसे पूरा विश्वास था कि संविधा की मां यानी उस की सास संविधा को समझाएंगी तो वह जरूर मान जाएगी.
यही उम्मीद लगा कर उस ने सारी बात अपनी सास रमा देवी को बता दी थी. इस के बाद रविवार को जब संविधा मां से मिलने आई तो रमा देवी ने उसे पास बैठा कर सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘संविधा बेटा, यह मैं क्या सुन रही हूं?’’
‘‘आप ने क्या सुना मम्मी?’’ संविधा ने हैरानी से पूछा.
‘‘यही कि तू गर्भपात कराना चाहती है.’’
‘‘मम्मी, आप को कैसे पता चला कि मैं गर्भवती हूं और गर्भपात कराना चाहती हूं? लगता है यह बात आप को सात्विक ने बताई है. उन के पेट में भी कोई बात नहीं पचती.’’
‘‘बेटा सात्विक ने बता कर कुछ गलत तो नहीं किया. वह जो कह रहा है, ठीक ही कह रहा है. बेटा, मां बनना औरत के लिए बड़े गर्व की बात होती है. तुम्हारे लिए तो यह गर्व की बात है कि तुम्हें यह मौका मिल रहा है और तुम हो कि गर्भ नष्ट कराने की बात कर रही हो.’’
‘‘मम्मी, जीवन में बच्चा पैदा करना ही गर्व की बात नहीं होती है. अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है. हमारा नयानया कारोबार है. इसे जमाना ही नहीं, बल्कि और आगे बढ़ाना है. बच्चा पैदा करने से पहले उस के भविष्य के लिए बहुत कुछ करना है. बच्चा तो बाद में भी हो जाएगा. अभी बच्चा होता है तो उस की वजह से कम से कम 2 साल मुझे घर में रहना होगा. मैं औफिस नहीं जा पाऊंगी. आप को पता नहीं, मैं कितना काम करती हूं. मेरा काम कौन करेगा? मैं अभी रुकना नहीं चाहती.’’