‘‘जिंदगी इतनी कमजोर नहीं कमल, और दीवाली के दिन की खुशी जुआ ही नहीं है. सोचो कमल, साल में एक बार आने वाला यह त्योहार सब के लिए खुशियों के दीप जलाता है और तुम्हारी चांदनी दुख के गहरे काले अंधेरे में पड़ी सिसकती रहती है. तुम्हें उस पर जरा भी दया नहीं आती. बोलो, क्या अपनी चांदनी के लिए भी तुम यह जुएबाजी बंद नहीं कर सकते?’’
‘‘उफ, चांदनी. तुम समझती क्यों नहीं, मैं हमेशा तो खेलता नहीं हूं, साल में अगर एक दिन मनोरंजन कर भी लिया तो कौन सी आफत आ गई. मेरे औफिस के सारे दोस्त खेलते हैं, उन की बीवियां खेलती हैं. तुम्हें तो यह पसंद नहीं और यदि मैं पीछे
हट जाऊं तो अपने दोस्तों की नजरों में गिर जाऊंगा. नहीं चांदनी, मैं ऐसा नहीं कर सकता.’’
चांदनी कुछ जवाब न दे सकी. कुछ पल की चुप्पी के बाद उस ने कहा, ‘‘कमल, पतिपत्नी का रिश्ता न केवल तन को एक डोर से बांधने वाला होता है बल्कि इस में मन भी बंध जाता है. हम दोनों एकदूसरे के पूरक हैं... हैं न.’’
कमल कुछ पल उस का चेहरा देखता रहा, ‘‘यह भी कोई कहने वाली बात है.’’
चांदनी कुछ पल शून्य में घूरती रही, ‘‘सोचती हूं कमल, पतिपत्नी को एकदूसरे के सुखदुख का हिस्सेदार ही नहीं बल्कि एकदूसरे की आदत, बुराइयों और शौक का भी हिस्सेदार होना चाहिए. जिंदगी की गाड़ी लगातार चलती रहे, यह जरूरी है न.’’
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो चांदनी?’’ कमल उस के चेहरे को ध्यान से पढ़ रहा था.
‘‘कमल, जुए से मुझे सख्त नफरत है, यह भी सच है कमल कि अच्छेखासे घरपरिवार जुए से बरबाद हो जाते हैं. फिर भी मैं तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ करूंगी. कमल मैं जुआ नहीं खेलती, इस के लिए तुम्हें दोस्तों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है लेकिन आइंदा यह नहीं होगा. मुझ से वादा करो कमल, आज से तुम अकेले कहीं नहीं जाओगे. अगर डूबना है तो दोनों साथ डूबेंगे.’’