आज के प्रतियोगिता के युग में बच्चों को सफल बनाने के लिए उन के मातापिता हर संभव प्रयास करते हैं. मगर अधिकांश मातापिता को चिंता रहती है कि पता नहीं वे अपने बच्चों को जीवनमूल्य सही तरह से सिखा रहे हैं या नहीं. उपलब्धियों के लिए प्रयास और सही जीवनमूल्यों के निर्माण के बीच बच्चे का जीवन होता है, जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मूल्यों को सिखाना असंभव है, क्योंकि अगर हम उन्हें ईमानदार, सहनशील बनना आदि सिखाने की कोशिश करते हैं, तो कई बार उन्हें ऐसी स्थितियों से गुजरना पड़ता है, जिन में वे अपने इन जीवनमूल्यों पर टिक नहीं पाते. जीवन के नैतिक मूल्य हर पल बदलते हैं और इन्हें बच्चा घर के माहौल से सीखता है.
इसी बात को ध्यान में रख कर ‘सर्फ ऐक्सेल’ ने ‘रैडी फौर लाइफ’ के ऊपर परिचर्चा की, जिस में बच्चों की देखभाल और पेरैंटिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञों ने अपनीअपनी राय दी.
व्यक्तित्व विकास पर असर
इस बारे में दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अप्रतिम गोयल कहते हैं, ‘‘बच्चा हमेशा बच्चा ही होता है. मातापिता का दायित्व होता है कि वे बच्चे को कैसे आगे ले जाएं. आज की पीढ़ी नई तकनीकों से लैस है. आईफोन, स्मार्टफोन आदि मातापिता बच्चे को कम उम्र में दे कर समझते हैं कि उन का बच्चा स्मार्ट किड बनेगा, जबकि ऐसा नहीं है. उस से कही गई 50 % बातों को वह नजरअंदाज करता है. ऐसा करतेकरते वह स्कूल से ले कर कालेज और कालेज से ले कर वर्कप्लेस तक सभी जगह कही गई बातों को नजरअंदाज करता है, जिस का असर उस के व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है.