इस साल भैरों, मंगल, रामदीन और किशना ने कांवड़ समिति में शामिल हो कर कांवड़ लाने का निश्चय किया. पिछले साल चारों महल्ले की डाककांवड़ की व्यवस्था करने वालों में शामिल थे. अच्छी कमाई हुई थी. इस साल ये चारों केंद्रीय कांवड़ समिति के व्यवस्थापकों में शामिल हैं. किसी न किसी रूप में कांवड़ उद्योग से जुड़े रह कर सालभर की कमाई केवल एक महीने में कमा लेने की जो सुविधा उन्हें हासिल है, वह किसी और उद्योग में शायद ही हो.
महज कमाई ही नहीं बल्कि इश्क फरमाने का भी अवसर मिल जाता है. खाने के लिए छप्पन भोगों के अलावा बेहतरीन चीजें भी बड़े आराम से हासिल हो जाती हैं. यानी धर्म का धर्म, मनोरंजन का मनोरंजन, साथ में और भी बहुत कुछ, जो आज के मस्तमलंदों को चाहिए.
कांवड़ ले जाने वालों की बातों पर यकीन करें तो जिंदगी के मजे लेने के लिए तो बस, कांवड़ समिति या कांवरडाक में शामिल हो जाइए, आगे मजे ही मजे हैं. कथित भगवान भी खुश, मनमाफिक संतुष्टि और पैसा व इज्जत मुफ्त में. सोचिए, इतने ढेर सारे फायदे और कहां मिल सकते हैं. इसलिए यह उद्योग दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा है. यों तो धर्म के नाम पर और भी तमाम उद्योग सदियों से बेरोकटोक चलाए जाते रहे हैं लेकिन यह उद्योग कई मामलों में दूसरे उद्योगों से अलग तरह का है. जो सम्मान इस उद्योग में है वह और किसी उद्योग में कहां मिल सकता है.
सावन का महीना मन को हराभरा करने वाला होता है. ऐसे में साथसाथ मनोरंजन मुफ्त में मिल जाए तो क्या कहने. भैरों, मंगल, रामदीन और किशना की तरह लाखों की तादाद में लड़के- लड़कियां, महिलाएं, बच्चे, पुरुष सावन का महीना शुरू होते ही उत्तर भारत की तकरीबन हर सड़क पर दिखने लगते हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी बड़े कार्य के लिए निकल पड़े हों. घरबार छोड़ कर इस तरह धर्म के नाम पर सड़कों पर नंगे पैर दौड़ लगाने को क्या कहा जाए?