मार्केटिंग के इस युग में दीवाली के आसपास उपहार लेना व देना अत्यंत स्वाभाविक प्रथा है. मेरे मन में कभी इस बारे में कोई संदेह उपजने का प्रश्न ही नहीं था. घर के बड़े छोटों को, सास बहू को, भाभी ननद को और भाई बहन को दीवाली पर भेंट उपहार देते ही हैं. पड़ोसी और दोस्त भी आपस में उपहार लेतेदेते हैं तो इस में अजीब कुछ नहीं लगता. हां, यह अवश्य कहना होगा कि हर साल इस का महत्त्व और आकार बढ़ता ही जा रहा है.
कारोबार के क्षेत्र में तो दीवाली में भेंट देने का महत्त्व और भी बढ़ जाता है. साल भर जिन से छोटामोटा संबंध बना रहता है उन्हें भेंट दे कर अपने संबंधों को अधिक मधुर बनाने का इस से अच्छा मौका और कब हो सकता है. दीवाली आने के कई दिन पहले ही हर व्यापारिक संस्थान में भेंट क्या और किसे देनी है, इस पर विचार होने लगता है. फिर वस्तुओं का चुनाव, मिठाई, सूखा मेवा या फल दिए जाएं इस पर विचार के साथ ही सजावट की कोई सुंदर वस्तु, डायरी, कैलेंडर, आदि पर भी चर्चा प्रारंभ हो जाती है.
भेंट की वस्तुएं बेचने वाले कई प्रकार के प्रस्ताव ले कर विभिन्न कंपनियों, दफ्तरों में आने लगते हैं. कई अत्यंत परंपरागत तो कई बहुत मूल्यवान किंतु बेमिसाल. क्या चुनें क्या न चुनें? निर्णय करना असंभव न कहें तो भी अतिशय जटिल हो जाता है. इस के अलावा मिठाइयां, आतिशबाजी तो खैर सामान्य हैं ही.
व्यापारिक प्रतिष्ठानों में किनकिन को क्याक्या और कितने मूल्य की भेंट देनी है इस बारे में कई सप्ताह पहले से ही लिस्ट बननी शुरू हो जाती है. खरीदारी के समय वही परंपरागत रूप से मोलभाव होता है. आदेश लेने वाला मन ही मन बहुत प्रसन्न होता है पर बोलता यही है कि आप तो हमारे पुराने ग्राहक हैं इसलिए आप को नाराज तो नहीं कर सकते. पर सच मानिए, कमाने के इस मौके पर ठोकबजा कर दाम वसूले जाते हैं. दीवाली के पहले ठीक समय पर सामान बिल के साथ आप के पास पहुंच जाता है.