नरेंद्र मोदी सरकार ने देशी उत्पादकों को राहत देने के लिए खुद ही गुणवत्ता का प्रमाणपत्र देने के सुझाव को मान लिया है. अरसा पहले सरकार ने भारतीय मानक संस्थान बना कर यह अधिकार अपने हाथ में ले लिया था और रिश्वत बटोरने के सैकड़ों तरीकों में यह भी एक अच्छा तरीका था जिस के इंस्पैक्टरों के बिना बहुत से उत्पाद बाजार में नहीं बिक सकते थे और बहुतों की सरकारी खरीदारी प्रतिबंधित थी.

उत्पादों की क्वालिटी का देश में उत्पादक कोई खास खयाल नहीं रखते, यह मान लेना चाहिए पर उस की वजह उत्पादकों की लापरवाही या मुनाफाखोरी कम है, कम मूल्य पर ज्यादा माल बिकने की संभावना ज्यादा है. हमारे अधिकांश ग्राहक समझते ही नहीं कि क्वालिटी का क्या महत्त्व है. हर घर में टूटे हैंडलों वाले बरतन, लटकते बल्बों के होल्डर, टेढ़ी पंखडि़यों वाले पंखे और चूंचूं करते एअरकंडीशनर दिख जाएंगे.

जब से विदेशी कंपनियों ने बिना मानक संस्थान के उपकरण बाजार में पेश किए हैं, यहां सरकारी प्रमाणपत्र से क्वालिटी का कोई महत्त्व ही नहीं रहा है. धुआंधार प्रचार और बढि़या क्वालिटी के बल पर ही विदेशी माल भारतीय माल को धकेल पाया है और भारतीय मानक संस्थान के प्रमाणपत्र मुंह ताकते रह गए हैं.

दर्जनों जांचों के बावजूद भारतीय मानक संस्थान असल में घरवाली का मित्र नहीं बना है. वह तो उत्पादक और उपभोक्ता के बीच का एक और बिचौलिया बन रहा है, जिस बाधा को बिना लिएदिए पार करना संभव ही नहीं था. अब औनलाइन रिव्यू करने की जो परंपरा चली है उस से और ज्यादा साबित हो रहा है कि गुणवत्ता के लिए सरकारी दखल नहीं ग्राहकी दखल चाहिए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...