ओजोन परत का पर्यावरण और  मानव सभ्यता से ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर विचरण कर रहे समस्त जीव जंतु से गहरा नाता है. इसमें आने वाले बदलाव का असर पूरी धरती पर देखने को मिलता है. ओजोन परत यानि पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच, यह कवच पृथ्वी और पर्यावरण को सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों से बचाती है. लेकिन हम मनुष्य ने भौतिक सुख के लिए इस सुरक्षा कवच में भी छेद कर डाला है, जो सूरज की खतरनाक किरणों से हमें अब तक बचाती रही है. चिंता की बात यह कि अब यह छेद सिर्फ छेद नहीं, मानव अस्तित्व के लिए अंतहीन सुरंग बनने की ओर बढ़ता जा रहा है.  ओजोन भी हमारी सभ्यता के विकास में अहम कारक है, लेकिन औद्योगीकरण के नाम पर मनुष्य ने जिस तरह से पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया है उसका नकारात्मक प्रभाव ओजोन पर भी पड़ा है.ओजोन परत तकरीबन 97 से 99 प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है. इसके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार 16 सितंबर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है.

* अंटार्कटिका के ऊपर  ओजोन छिद्र:-  वैज्ञानिकों को सन् 1970 के दौरान ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे. इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1985 में संपूर्ण विश्व ने वियना में इस समस्या के निपटने के लिए प्रयत्न करने आरंभ किए. इसी साल ब्रिटिश वैज्ञानिकों जोसेफ फारमैन, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन को अंटार्कटिका के ऊपर  ओजोन छिद्र होने का पता चला था. इस ऐतिहासिक साल को वियना संधि के नाम से भी जाना जाता है. इसके बाद समूचे विश्व ने इस मुददे पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया जिसके फलस्वरूप मॉन्ट्रियल संधि हुई. सन् 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्ट्रियल संधि की स्मृति में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गया .23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओजोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए. हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओजोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है.

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