हेयर रिमूवर का चलन देश में पिछले 2 दशकों में तेजी से बढ़ा है. यह जागरूकता भी है जिस के चलते देश की आधी आबादी कही जाने वाली महिलाएं अंदरूनी साफसफाई के मामले में भी आत्मनिर्भर हो रही हैं. मगर सच यह भी है कि अभी इस दिशा में और कोशिशों और प्रचारप्रसार की जरूरत है.
हेयर रिमूवर अब एक अनिवार्य कौस्मैटिक आइटम है, जो साबुन और शैंपू की तरह बाथरूम का हिस्सा बन चुकी है जबकि कुछ सालों पहले तक अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं बेहद परेशानी और तनाव में रहती थीं. 90 के दशक से पहले तक हेयर रिमूवर का इस्तेमाल ज्यादातर संपन्न महिलाएं ही करती थीं. इस की एक वजह मध्यवर्गीय महिलाओं की हिचकिचाहट और खरीदारी करने की आजादी न होना भी थी. तब अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए वे ब्लेड और रेजर की मुहताज हुआ करती थीं और उस का भी प्रयोग वे तभी कर पाती थीं जब पुरुष घर पर नहीं होते थे.
हाईजीन के प्रति बदलती सोच
जब महिलाओं को साफसफाई की आइटमों का इस्तेमाल करने की आजादी मिलने लगी तो उन में गजब का आत्मविश्वास आया. रिटायरमैंट की कगार पर खड़ी भोपाल की एक प्रोफैसर की मानें तो 35 साल पहले शादी के वक्त वे बहुत तनाव में रही थीं. बगलों और गुप्तांगों के बालों से छुटकारा पाने का तब उन्हें कैंची के अलावा और कोई तरीका नहीं दिखता था. ये प्रोफैसर बिना संकोच बताती हैं कि तब शादियां लंबी और रीतिरिवाजों से लवरेज रहती थीं. वे पूरी शादी में बालों को ले कर तनाव में रहीं जो आज भी शादी के फोटोग्राफ्स में उन के चेहरे पर साफ दिखता है.