शादी और करियर में से किसे कितना महत्व दिया जाए, इस दुविधा में फंसी युवा पीढ़ी की कहानी को बेतरतीब तरीके से पेश की जाने वाली फिल्म है-‘‘लाली की शादी में लड्डू दीवाना’’. फिल्म में नायक अपने करियर की आड़ में अपनी गर्भवती प्रेमिका से दूर हो जाता है और उसकी शादी किसी अन्य से होती है.
फिल्म की कहानी के केंद्र में एक सायकल की दुकान के मालिक (दर्शन जरीवाला) के बेटे लड्डू (विवान शाह) हैं. उसकी तमन्ना सायकल की दुकान में बैठने की बजाय रातों रात बहुत बड़ा उद्योगपति बनने की है. इसी के चलते वह दूसरे शहर में एक रेस्टारेंट में नौकरी करने लगता है, जहां उसकी मुलकात लाली (अक्षरा हासन) से होती है. जो कि अपने पिता (सौरभ शुक्ला) का घर छोड़कर इसी शहर में नौकरी कर रही है. लड्डू खुद को करोड़पति पिता की संतान बताकर लाली को अपने प्यार में फांसता है. दोनों के बीच प्यार पनपता है और एक साथ रहने लगते हैं. पर लड्डू के दिमाग में तो पैसा हावी है. परिणामतः लड्डू की नौकरी चली जाती है और फिर लाली भी उसका घर छोड़कर चली जाती है.
इसके बाद कहानी में बड़ा मोड़ आता है. रामनगर के युवराज (गुरमीत चौधरी) की दादी को ज्योतिषी बताता है कि यदि युवराज की शादी किसी गर्भवती लड़की से कर दी जाए, तो इनके जीवन में सब कुछ ठीक हो जाएगा. युवराज व लाली की शादी तय हो जाती है. फिर कहानी में कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं और एक दिन लाली एक बच्चे की मां बन जाती है.