बौलीवुड फिल्मों से समाज पर सकारात्मक असर पड़ रहा है या नहीं, इस पर सालों से बहस चल रही है. पर अगर बात समाज में गलत संदेश भेजने की करें, तो बौलीवुड की फिल्में सालों से ये काम बखूबी कर रही हैं. जैसे- स्टॉकिंग जैसे अपराध को बौलीवुड की फिल्में हमेशा से प्रोमोट करती हैं. स्टॉकिंग ही क्यों, जातिवाद, लैंगिकवाद आदि को भी बौलीवुड की फिल्मों ने जाने-अनजाने बढ़ावा दिया है.
‘कौन सी बौलीवुड फिल्मों ने समाज में गलत संदेश भेजा?’, जब Quora पर यह सवाल पूछा गया तो यूजर्स के जवाब भी सवाल की तरह ही दिलचस्प थे. इन फिल्मों में हमशक्लस, ग्रैंड मस्ती जैसी फिल्में तो थी हीं पर दंगल जैसी फिल्म को भी कुछ लोगों ने समाज के लिए गलत बताया.
1. पार्टनर, ढिशूम, दोस्ताना...
मल्लिकार्जून पंड्या ने बहुत ही जरूरी बात कही. बौलीवुड की फिल्मों में सम्लैंगिक रिश्तों को हमेशा नकारात्मक रूप में प्रस्तूत किया है. ज्यादातर फिल्मों में ऐसा दिखाया जाता है कि गे खुलेआम स्ट्रेट पुरुषों की ताक में रहते हैं. पार्टनर फिल्म में सुरेश मेनन की किरदार इस मानसिकता का उदाहरण है.
बहुत से लोगों का मानना है कि दोस्ताना फिल्म का क्लाइमैक्स सम्लैंगिकता का मजाक उड़ाती है.
ढिशूम में भी अक्षय कुमार का किरदार गे लोगों का मजाक ही उड़ाता है.
2. कुछ कुछ होता है (1998)
यह फिल्म बहुत से लोगों के दिल को छू गई. पर इस फिल्म की शुरुआत ही एक बात पर सोचने पर मजबूर कर देती है. एक 8 साल की लड़की इतनी मैच्यूर है की अपने पापा को उनके ‘सच्चे प्यार’ से मिलाने में मदद करती है. सानंदन रतकल ने इस मूवी के बनावटीपन पर प्रशन उठाया. एक लड़के को लड़की से तभी प्यार हुआ जब लड़की साड़ी में, चुड़ियां खनकाते हुए भजन गाती है. बास्केट बॉल खेलते वक्त प्यार नहीं होता.