पिछला भाग पढ़ने के लिए- Valentine’s Special: अनोखी (भाग-1)
‘‘अबे चल कोई फिल्म है क्या? मैं आंटी से बात करता हूं अगर तू वाकई सीरियस है तो,’’ प्रख्यात हंसा था.
‘‘अच्छा इतना ही सयाना है तो मेरी आंटी से लड़की से मिलने देने को क्यों नहीं कहता... ये पुरातनपंथी मानने वाले नहीं...’’
‘‘अरे कुछ ही दिनों की बात है. रहने देते हैं न उन्हें सुख से अपने संस्कारों में, अपनी मान्यताओं में. 15 को तो मिल ही लूंगा...’’
‘‘पसंद न आई तो?’’ सिकंदर अभी भी नहीं पचा पा रहा था कि प्रख्यात बिना देखे शादी के लिए कैसे मान रहा है.
‘‘अरे घर वाले ही हैं अच्छा ही सोचा होगा,’’ कह प्रख्यात मुसकराया.
‘‘फिर भी... कमाल है तू... हद ही है... अच्छा सुन अगले सोमवार कर लेते हैं शादी... वह कह रही थी कि हम सीधा कोर्ट आ जाएंगे... तू वहां का सब संभाल लेना. तेरे दोस्त वहां हैं न. फिर घर जा कर सब का आशीर्वाद ले लेंगे. उन्हें देना ही पड़ेगा घर वाले जो हैं,’’ वह प्रख्यात की बात दोहराते हुए हंसा था.
‘‘कमाल है, तू उलटापलटा काम करेगा और मेरी नकल उतारेगा... मैं इन बातों में साथ नहीं देने वाला... आंटीअंकल से मु झे डांट नहीं खानी... मेरा रैपो क्यों खराब करना चाहता है?’’
‘‘अबे यार उस की दोस्त सखी तो उस की मदद को साथ आ रही है,’’ सिकंदर बोला.
‘‘दोस्तसखी एक ही बात है. नाम नहीं कह सकता?’’
‘‘यही नाम मालूम है मु झे. वह हमारी शादी तक में सब संभाल लेगी. उस के बाद काम तेरा, तू कैसा दोस्त है यार... अच्छा चल किसी दोस्त को ही बोल दे वहां सब तैयारी रखे.’’