श्रेया प्रैगनैंट थी. उस ने होने वाले बच्चे की सारी तैयारी भी कर रखी थी. जब उस की डिलिवरी हुई तो उसे जुड़वां बच्चे पैदा हुए. उस का इस तरफ ध्यान ही न था कि उसे जुड़वां बच्चे भी हो सकते हैं, क्योंकि वह जिस डाक्टर से अपनी रूटीन जांच कराती थी उस ने भी ऐसी कोई जानकारी उसे नहीं दी थी. उसे डाक्टरों ने जुड़वां बच्चों की देखभाल से जुड़े तमाम दिशानिर्देश दिए. बच्चों के साफसफाई, पोषण सहित ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी पूरी जानकारी दी.
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जब श्रेया घर आई तो 1 हफ्ते तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, फिर उस के दोनों बच्चे चिड़चिड़े से रहने लगे.
घबराई श्रेया ने पति के साथ ऐक्सपर्ट डाक्टर से मिल कर उन्हें बच्चों के चिड़चिड़े होने और सही से ब्रैस्टफीडिंग न कर पाने की बात बताई. तब डाक्टर ने श्रेया को बताया कि जुड़वां बच्चों के मामले में यह आम बात है, क्योंकि जुड़वां बच्चों में ब्रैस्टफीडिंग कराने के दौरान विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है. इस के बाद फिर डाक्टर ने श्रेया को ब्रैस्टफीडिंग में अपनाई जाने वाली कुछ पोजीशंस बताईं, साथ ही कुछ सावधानियां बरतने को भी कहा, जिन पर गौर करने के बाद श्रेया की शिकायत दूर हो गई.
1. 6 माह तक विशेष खयाल
मां और बच्चों की विशेषज्ञा डाक्टर प्रीति मिश्रा कहती हैं कि अकसर मांएं जन्म के बाद से ही अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के साथ ही ऊपर से गाय का दूध, शहद, घुट्टी, पानी आदि देने लगती हैं. जुड़वां बच्चे होने पर यह सिलसिला और भी बढ़ जाता है, क्योंकि मां को लगता है कि स्तनपान बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं हो रहा है जबकि 6 माह के पहले अगर बच्चे को ऊपर से कुछ भी दिया जाता है तो वह उसे बीमार करने के साथसाथ उस के पोषण को भी प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर मां को यह तय कर लेना चाहिए कि बच्चे को स्तनपान ही कराना है ऊपर का कुछ भी नहीं देना है. फिर चाहे वह जुड़वां बच्चों की मां हो या सिंगल बच्चे की. मां दोनों ही के लिए अपनी ब्रैस्ट में पर्याप्त दूध का निर्माण कर लेती है.