फर्टिलिटी एक्सपर्ट का कहना है कोरोनावायरस ने हमारी जिंदगी में कई तरह से बाधा डाली है. न्यू नार्मल के लिए अनुकूल बनने की दिशा में हम किसी भी नए बदलाव और जिम्मेदारी में ढलने को लेकर बहुत डरे हुए हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि यह हम सभी के लिए मुश्किल भरा समय है. लेकिन जिन लोगों को तुरंत मेडिकल निगरानी की जरुरत है खासकर उनके लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण है. इमरजेंसी केसेस के अलावा कोविड ने कई एक्टिव हेल्थकेयर फैसिलिटी में रुकावट डाली है इसमें आईवीएफ प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है. ऐसा अनुमान लगाया है कि हर साल भारत में करीब 30 लाख लोग इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट कराना चाहते है. इनमे से करीब 5 लाख आईवीएफध्यूआई ट्रीटमेंट कराते है. लेकिन कोविड-19 के समय में ऐसे लोगों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई जगहों पर रोक लगने, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कमी आने और कोविड दिशानिर्देश कड़े हैं. आईवीएफ सायकल एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें फाइनल ट्रीटमेंट से पहले कई कंसल्टेशन की जरुरत होती है.

अब जब काफी छूट मिल चुकी है तो आईवीएफ सेंटर भी फिर से खुल गए हैं. हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि जब आईवीएफ प्रोसीजर कराने की बात आती है तो लोग दोहरे विचार में होते है.

नीचे कुछ कारण बताये जा रहे हैं कि जिसकी वजह से लोग चिंता में रहते हैं कि आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराये या न कराएँ.

 वर्तमान स्थिति को लेकर चिंता

भारत में कई राज्यों में कोविड-19 के कारण स्थिति काफी अस्थिर है और वायरस अपने चरम पर है. कई लोगों को इसकी वजह से जान से हाथ धोना पड़ रहा हैं. कई जोड़े (कपल्स) फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को शुरू करने को लेकर संशय में है. हालांकि गायनेकोलिस्ट ने सुझाव दिया है कि महामारी में प्रेग्नेंट होना सबसे अनुकूल समय है. जब आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराने की बात आती है, तो जोड़े इस बात को काफी अनिश्चित होते हैं कि क्या उन्हें इस प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए या नहीं. क्योंकि इसके लिए उन्हें क्लीनिक में जाना पड़ सकता है. उन्हें यह शंका रहती है कि आईवीएफ प्रक्रिया को परफार्म करने वाला क्लीनिक सभी दिशानिर्देशों का पालन कर रहा है या नहीं.\

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