यूं तो एक मां बनने का सफर रोमांचक होता है, लेकिन कुछ महिलाओं के लिये यह काफी मुश्किल भी हो सकता है. कई महिलाओं को प्रैग्नेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है, और उन्हें मितली और उल्टी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, अपने नाम से उलट मॉर्निंग सिकनेस दिन या रात किसी भी वक्त हो सकता है.
डॉ.आस्था जैन माथुर, कंसलटेंट प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, मैकेनिक नगर इंदौर का कहना है कि-
प्रैग्नेंट महिलाओं में यह समस्या बेहद आम है, खासकर पहली तिमाही में. हालांकि, कुछ महिलाओं को गर्भवस्था की पूरी अवधि में ही मॉर्निंग सिकनेस का अनुभव होता है.
कुछ घरेलू उपचार, जैसे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-कुछ खाते रहना और अदरक का रस (जिंजर ऐल) पीने के साथ-साथ मितली को कम करने के लिये ओवर-द-काउंटर दवाएं भी उपलब्ध हैं. इसे अपनी जरूरत के हिसाब से लिया जा सकता है. ऐसा बहुत कम होता है कि मॉर्निंग सिकनेस एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाए कि वह हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में तब्दील हो जाए.
हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम, तब होता है जब किसी को प्रैग्नेंसी-संबंधी मितली और उल्टी होती है. इसके गंभीर लक्षण होते हैं, जिससे काफी डिहाड्रेशन हो सकता है या फिर प्रैग्नेंसी से पहले शरीर का वजन 5% तक कम हो सकता है. हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में अस्पताल में भर्ती कराने और इंट्रावीनस (आईवी) फ्लूड्स, दवाएं देने की जरूरत पड़ सकती है. कई बार इसमें फीडिंग ट्यूब लगाने की जरूरत भी पड़ सकती है.
मॉर्निंग सिकनेस के आम लक्षणों और संकेतों में जी मचलाना और उल्टी शामिल है, जो अक्सर किसी खास प्रकार की गंध, मसालेदार खाने, गर्मी, अत्यधिक लार या कई बार बिना कारण भी होता है. मॉर्निंग सिकनेस अक्सर प्रैग्नेंसी के नौ सप्ताह बाद शुरू होती है और पहली तिमाही के दौरान सबसे अधिक पाई जाती है. दूसरी तिमाही के मध्य से अंत तक, अधिकांश प्रैग्नेंट मांओं के लक्षणों में सुधार होने लगता है.