वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले 15मिलियन बच्चों में से 1/5 भारत में जन्म लेते है और पूरी दुनिया में 5साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले बच्चों का पैदा होना है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में इन नवजातों की गहन चिकित्सा और देखभाल की काफी जरूरत है,जो हमारे देश में समय पर संभव नहीं होता.
प्रीमेच्योर चाइल्ड बर्थ एंड केयर वीक पर समय से पहले शिशुओं के जन्म के बारे में नवी मुंबई, कोकिलाबेन, धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल की कंसलटेंट, ऑब्सटेरिक्स और गायनेकोलॉजी डॉक्टर बंदिता सिन्हा कहती है कि आम तौर पर गर्भावस्था का पूरा समय 40 हफ़्तों का होता है, लेकिन कुछ मामलों में अचानक से ऐसी जटिलताएं हो जाती हैं कि 37 हफ़्तों की गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही शिशु का जन्म हो जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस स्थिति को प्री-टर्म या समय से पहले जन्म कहा है और इसकी तीन उप-श्रेणियां बताई हैं:
- अत्यधिक अपरिपक्व (28 हफ़्तों से कम)
- बहुत अपरिपक्व (28 से 32 हफ़्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु)
- मध्यम से देर से अपरिपक्वता (32 से 37 हफ़्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु)
पहली बार माता-पिता बन रहे दंपति पर समय से पहले जन्म का प्रभाव
शिशु का समय से पहले जन्म, खासकर अगर शिशु गंभीर रूप से अस्वस्थ हो, तो पूरे परिवार के लिए बेहद तनावपूर्ण हो सकता है. इस समस्या के बारे में जानकारी या पूर्व अनुभव न होने की वजह से निओनेटल यूनिट में शिशु के माता-पिता को बड़े संकट से गुज़रने की भावना महसूस होती है. सी-सेक्शन या सिजेरियन सेक्शन के ज़रिए कराए गए समय से पहले जन्म में, माताओं का जन्म के बाद पहले कुछ दिनों तक अपने नवजात शिशु के साथ बहुत कम या कोई संपर्क नहीं होता है. इससे माता-पिता पर तनाव और भी ज़्यादा बिगड़ जाता है. चिंता, डिप्रेशन, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), और कुल स्वास्थ्य पर असर पड़ने का खतरा रहता है. सिंगल साइट्स या अस्पतालों में किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि यह नकारात्मक प्रभाव, खासकर गर्भावस्था पूरी होने के बहुत पहले जन्म के बाद पैदा होने वाले तनाव, लंबे समय तक बने रह सकते है.