40 वर्षीय वर्किंग वुमन सुनीता पिछले कई महीनों से अपने पेट की बिमारी से पीड़ित थी, उसने कई महीनों तक इलाज करवाया, पर कुछ फायदा नहीं था, उसे प्राय: पेट में दर्द और लूज मोशन हुआ करता था, बार-बार उसे हौस्पिटल में एडमिट करवा दिया जाता था. सारे टेस्ट करवा डाले फिर भी ठीक नहीं हुई. जितने दिनों तक एंटीबायोटिक लेती थी, ठीक रहती थी. कुछ दिनों बाद फिर से शुरू हो जाता था, अंत में वह पेट के डौक्टर के पास गयी और पता चला कि उसे इरिटेबल बाउल सिंड्रोम है. जिसका इलाज कर आज वह इस बीमारी से निजात पा चुकी है.
असल में इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) पेट की एक आम बीमारी है. यह बीमारी बड़ी आंत को प्रभावित करती है. कुछ लोगों में ये लगातार बाउल मूवमेंट की वजह से डायरिया का रूप लेती है तो कुछ लोगों में बाउल मूवमेंट कम होने की वजह से कब्ज की शिकायत हो जाती है. जिससे पीड़ित व्यक्ति को पेट में दर्द, मरोड़ होना, सूजन ,गैस ,कब्ज, डायरिया आदि समस्या हो जाती है. इस बारें में मुंबई के संजीवनी हौस्पिटल और सुश्रुषा हॉस्पिटल के गेस्ट्रोएंट्रोलोजिस्ट डौ.समित जैन कहते है कि पेट की ये बीमारी 20 साल से लेकर 45 साल तक की महिलाओं और पुरुषों दोनों में कqमन है, इसकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. खासकर वर्किंग यंग लोगों में आजकाल 100 लोगों में से करीब 30 या 40 लोगों को ये बीमारी है. ये बीमारी तीन तरह की होती है.
- आईबीएस डी
- आईबीएस सी
- आईबीएसएम
आई बी एस डी में डायरिया के लक्षण प्रमुखता से पाए जाते है ,जबकि आई बी एस सी में कब्ज के लक्षण होते है और आई बी एस एम् में दोनों के लक्षण कॉमन होते है. आम तौर पर रोगी पेट के दर्द की शिकायत करता है. उसके बाद डायरिया या कब्ज के अनुसार दवा दी जाती है. ऐसे रोगी की सारे रिपोर्ट नार्मल होते है. जैसे कि सी बी सी,सोनोग्राफी, सिटी स्कैन, एंडोस्कोपी, स्टूल टेस्ट सब नार्मल होते है. ये समस्या लम्बे समय तक चलती है, मसलन 3 महीने से लेकर 6 महीना सालभर तक होती रहती है,लेकिन समय से इलाज़ करवाने और अपने जीवनशैली पर ध्यान रखकर इससे निजात पाया जा सकता है.