बोर्ड परीक्षाओं का दौर प्रारम्भ हो चुका है....कुछ स्टेट बोर्ड की परीक्षाएं प्रारम्भ हो चुकीं हैं तो कुछ की आगामी महीनों में प्रारम्भ होने वालीं हैं. कोरोना का प्रकोप भी अब काफी कम है और परीक्षाएं भी ऑफ़लाइन ही हो रहीं हैं. इन दिनों में जहां बच्चे दिन रात किताबों में सिर गढाए नजर आते हैं वहीँ कई घरों में बच्चों से अधिक उनके माता पिता बच्चे की परीक्षाओं को लेकर तनाव में नजर आते हैं. उन्हें हर समय यही लगता है कि बच्चा कम पढाई कर रहा है या इतनी पढाई आजकल की गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में पर्याप्त नहीं है, अपनी इसी सोच के चलते वे बच्चे को बार बार टोकना, ताना मारने जैसी गतिविधियों को करना प्रारंभ कर देते है जिससे बच्चा मानसिक रूप से तो आहत होता ही है साथ ही अपने अध्ययन पर भी ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता, यही नहीं कई बार तो अभिभावकों की बातों को सुन सुनकर ही बच्चा परीक्षा को हौव्वा समझने लगता है. इस समय में अभिभावको की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस समय उन्हें उसका सपोर्ट सिस्टम बनना चाहिए ताकि बच्चा मन लगाकर अपना अध्ययन कर सके.

1. तुलना न करें

‘‘मेरी सहेली की बेटी रोज 10 घंटे पढाई करती है और एक तुम हो कि 2 घंटे भी एक जगह नहीं बैठते.’’ अस्ति अपने बेटे को पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली की बेटी का उदाहरण अक्सर देती है. इस प्रकार की तुलनात्मक बातें बच्चे को मानसिक रूप से आहत करतीं हैं क्योंकि जिस प्रकार अपनी किचिन में आपका काम करने का अपना तरीका होता है उसी प्रकार हर बच्चे का भी अपनी पढाई का एक तरीका, योग्यता और क्षमताएं होती हैं और वह उसी के अनुसार अपना अध्ययन करता है.

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